4 ट्रिलियन की उड़ान: भारत की अर्थव्यवस्था ने जापान को कहा बाय-बाय !

4 ट्रिलियन -सुनने में तो बड़ा मजा आ रहा है ना कि भारत ने जापान को पीछे छोड़ दिया और अब दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है! नीति आयोग के सीईओ बी.वी.आर. सुब्रह्मण्यम ने हाल ही में बताया कि भारत की इकोनॉमी अब 4 ट्रिलियन डॉलर की हो चुकी है। ये कोई छोटी-मोटी बात नहीं है। जापान, जिसकी इकोनॉमी दशकों से दुनिया की टॉप लिस्ट में रही है, उसे पीछे छोड़ना अपने आप में एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। लेकिन सवाल ये है कि इसका भारत के लिए क्या मतलब है? क्या इसका फायदा हमारी जेब तक पहुंचेगा? और क्या हम वाकई जापान से हर मामले में आगे निकल गए हैं? चलो, इसकी पूरी कहानी समझते हैं।

भारत का 4 ट्रिलियन वाला मील का पत्थर

सबसे पहले तो ये समझ लो कि 4 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी का मतलब है कि भारत में हर साल जितना सामान बनता है, जितनी सर्विसेज दी जाती हैं, और जितना पैसा इकोनॉमी में घूमता है, उसकी कुल कीमत अब 4 लाख करोड़ डॉलर के बराबर है। ये रकम इतनी बड़ी है कि इसे समझने के लिए हमें थोड़ा दिमाग लगाना पड़ेगा। मोटे तौर पर, ये रकम भारत के हर नागरिक के लिए औसतन करीब 2,800 डॉलर प्रति व्यक्ति की आय के बराबर बैठती है। लेकिन ये औसत है, इसका मतलब ये नहीं कि हर भारतीय की जेब में इतना पैसा है।

जापान को पीछे छोड़ने की बात करें तो ये उपलब्धि इसलिए खास है क्योंकि जापान की इकोनॉमी दशकों से टेक्नोलॉजी, मैन्युफैक्चरिंग, और एक्सपोर्ट के मामले में दुनिया के टॉप देशों में रहा है। उसकी कारें, इलेक्ट्रॉनिक्स, और रोबोट्स पूरी दुनिया में मशहूर हैं। लेकिन भारत ने पिछले कुछ सालों में जबरदस्त रफ्तार पकड़ी है। 2020 में भारत की इकोनॉमी करीब 2.7 ट्रिलियन डॉलर की थी, और महज 5 साल में ये 4 ट्रिलियन तक पहुंच गई। ये रफ्तार बताती है कि भारत की ग्रोथ स्टोरी अब दुनिया में सबसे तेज है।

कैसे पहुंचे हम यहां?

अब सवाल ये है कि आखिर भारत ने ये कमाल कैसे कर दिखाया? इसके पीछे कई वजहें हैं। सबसे पहले, भारत की आबादी। हमारे पास 140 करोड़ से ज्यादा लोग हैं, और ये दुनिया का सबसे बड़ा मार्केट है। लोग खरीद रहे हैं, बेच रहे हैं, और इकोनॉमी को चला रहे हैं। दूसरा, डिजिटल क्रांति। यूपीआई, ऑनलाइन शॉपिंग, और डिजिटल पेमेंट्स ने भारत की इकोनॉमी को रॉकेट की स्पीड दी है। आज भारत में हर गली-नुक्कड़ पर लोग मोबाइल से पेमेंट कर रहे हैं, जो पहले कभी नहीं देखा गया।

तीसरा, सरकार की नीतियां। मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, और डिजिटल इंडिया जैसे प्रोग्राम्स ने बिजनेस को बढ़ावा दिया है। विदेशी कंपनियां अब भारत में फैक्ट्रियां लगा रही हैं। एप्पल, सैमसंग, और टेस्ला जैसी कंपनियां भारत में प्रोडक्शन बढ़ा रही हैं। इसके अलावा, इंफ्रास्ट्रक्चर पर भारी निवेश हुआ है। नए हाईवे, मेट्रो, और स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट्स ने इकोनॉमी को और मजबूत किया है।

चौथा, सर्विस सेक्टर। भारत का आईटी सेक्टर, सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट, और बीपीओ इंडस्ट्री दुनिया में सबसे आगे हैं। बेंगलुरु, हैदराबाद, और पुणे जैसे शहर ग्लोबल टेक हब बन चुके हैं। साथ ही, स्टार्टअप्स की बाढ़ आ गई है। ओला, पेटीएम, और बायजूस जैसे स्टार्टअप्स ने न सिर्फ भारत में, बल्कि विदेशों में भी अपनी धाक जमाई है।

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जापान से आगे, लेकिन कितना आगे?

अब ये सवाल कि क्या हम जापान से हर मामले में आगे निकल गए हैं? इसका जवाब थोड़ा पेचीदा है। जीडीपी के मामले में तो हां, हमने जापान को पछाड़ दिया है। लेकिन अगर प्रति व्यक्ति आय की बात करें, तो जापान अभी भी हमसे बहुत आगे है। जापान में प्रति व्यक्ति आय करीब 34,000 डॉलर है, जबकि भारत में ये 2,800 डॉलर के आसपास है। यानी, जापान का औसत नागरिक हमसे 10 गुना ज्यादा कमाता है।

जापान की इकोनॉमी ज्यादा परिपक्व और स्थिर है। वहां टेक्नोलॉजी, इनोवेशन, और क्वालिटी ऑफ लाइफ में भारत अभी पीछे है। लेकिन भारत की ताकत उसकी रफ्तार में है। हमारी इकोनॉमी हर साल 6-7% की दर से बढ़ रही है, जबकि जापान की ग्रोथ 1-2% के आसपास है। अगर यही रफ्तार रही, तो अगले कुछ सालों में भारत जर्मनी को भी पीछे छोड़ सकता है, जो अभी 4.5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी के साथ तीसरे नंबर पर है।

इसका आम आदमी के लिए क्या मतलब?

अब सबसे बड़ा सवाल: इस 4 ट्रिलियन की बात का आम आदमी को क्या फायदा? सच कहें तो ये नंबर अपने आप में जादू नहीं करेगा। भारत में अभी भी गरीबी, बेरोजगारी, और असमानता बड़ी समस्याएं हैं। हां, लेकिन इस ग्रोथ का कुछ फायदा जरूर दिख रहा है। मसलन, नए जॉब्स बन रहे हैं। स्टार्टअप्स और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में लाखों नौकरियां निकल रही हैं। डिजिटल इकोनॉमी ने छोटे बिजनेस को बढ़ावा दिया है। गांव-गांव में लोग ऑनलाइन बिजनेस शुरू कर रहे हैं।

इसके अलावा, इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट का फायदा भी आम आदमी को मिल रहा है। नई सड़कें, मेट्रो, और इंटरनेट कनेक्टिविटी ने जिंदगी को आसान बनाया है। लेकिन ये भी सच है कि इस ग्रोथ का फायदा हर किसी तक बराबर नहीं पहुंच रहा। शहरों में तो चमक-दमक दिख रही है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में अभी बहुत काम बाकी है।

जर्मनी को पछाड़ने की राह

नीति आयोग के सीईओ ने ये भी कहा है कि भारत जल्द ही जर्मनी को पीछे छोड़ देगा। जर्मनी की इकोनॉमी 4.5 ट्रिलियन डॉलर की है, और भारत उससे ज्यादा दूर नहीं है। अगर भारत की ग्रोथ रेट ऐसी ही रही, तो अगले 2-3 साल में ये मुमकिन है। लेकिन इसके लिए कुछ चुनौतियां भी हैं। मसलन, हमें शिक्षा और हेल्थकेयर पर और ज्यादा निवेश करना होगा। स्किल डेवलपमेंट पर जोर देना होगा, ताकि हमारे युवा ग्लोबल मार्केट में और बेहतर परफॉर्म कर सकें।

दूसरी चुनौती है पर्यावरण। तेजी से बढ़ती इकोनॉमी के साथ कार्बन उत्सर्जन भी बढ़ रहा है। भारत को ग्रीन एनर्जी और सस्टेनेबल डेवलपमेंट पर फोकस करना होगा। सोलर, विंड, और हाइड्रोजन एनर्जी में भारत पहले ही अच्छा काम कर रहा है, लेकिन इसे और तेज करना होगा।

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भविष्य की उड़ान

तो दोस्तों, ये 4 ट्रिलियन डॉलर की कहानी सिर्फ एक शुरुआत है। भारत अब दुनिया की टॉप इकोनॉमियों में शामिल हो चुका है, और अगला टारगेट जर्मनी है। लेकिन असली कामयाबी तभी होगी, जब इस ग्रोथ का फायदा हर भारतीय तक पहुंचे। हमें ऐसी नीतियां चाहिए जो न सिर्फ इकोनॉमी को बढ़ाएं, बल्कि हर नागरिक की जिंदगी को बेहतर बनाएं।

जापान को पीछे छोड़ना गर्व की बात है, लेकिन असली जीत तब होगी जब हम प्रति व्यक्ति आय, शिक्षा, स्वास्थ्य, और जिंदगी की क्वालिटी में भी दुनिया के टॉप देशों के बराबर पहुंचें। तो, तैयार हो जाइए, क्योंकि भारत की उड़ान अब रुकने वाली नहीं है !

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