Modi-Trump नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रम्प—दो ऐसे नाम जो अपने-अपने देशों की सियासत में तहलका मचा रहे हैं। दोनों ही लीडर अपनी मजबूत पर्सनैलिटी, जनता से सीधे जुड़ने की कला और नेशनलिस्ट सोच के लिए जाने जाते हैं। ट्रम्प तो खुलकर मोदी को अपना “दोस्त” कहते हैं, लेकिन दूसरी तरफ वही ट्रम्प कभी ट्रेड टैरिफ्स तो कभी इमिग्रेशन पॉलिसी के बहाने भारत को निशाने पर लेते दिखते हैं। तो सवाल ये है—क्या है इन दोनों की लीडरशिप स्टाइल में अंतर? और इसका भारत-अमेरिका के डिफेंस और ट्रेड रिलेशन्स पर क्या असर पड़ रहा है? चलिए, इसकी पड़ताल करते हैं।
मोदी और ट्रम्प की लीडरशिप: एक तुलना
मोदी की स्टाइल: सधा हुआ और लंबी रेस का घोड़ा
मोदी की लीडरशिप का स्टाइल ऐसा है जैसे कोई शतरंज का मास्टर हर चाल सोच-समझकर चलता हो। वो जनता से सीधे कनेक्ट करते हैं—चाहे “मन की बात” रेडियो प्रोग्राम हो या सोशल मीडिया पर उनकी एक्टिव मौजूदगी। मोदी की ताकत है उनकी डिसिप्लिन और लॉन्ग-टर्म विजन। जैसे, “मेक इन इंडिया” या “डिजिटल इंडिया” जैसी स्कीम्स दिखाती हैं कि वो भारत को ग्लोबल पावर बनाने की रणनीति पर काम करते हैं। उनकी विदेश नीति भी इसी तरह की है—चाहे रूस हो, अमेरिका हो, या चीन, वो हर किसी से दोस्ती निभाते हैं, लेकिन भारत के हितों को पहले रखते हैं।
मोदी की बात करने का तरीका भी देसी और दिल को छूने वाला है। वो कहानियां सुनाते हैं, इमोशन्स से खेलते हैं, और जनता को लगता है कि वो उनका अपना आदमी है। लेकिन उनकी सख्त इमेज—जैसे CAA या आर्टिकल 370 जैसे फैसलों में—उनको एक ऐसा लीडर बनाती है जो अपने फैसलों पर अडिग रहता है, चाहे कितना ही विवाद हो।
ट्रम्प की स्टाइल: बुलडोजर वाला अप्रोच
अब बात करें ट्रम्प की। ट्रम्प का स्टाइल बिल्कुल डायरेक्ट और बिंदास है। वो जो सोचते हैं, वही बोलते हैं—चाहे वो सही हो या गलत। उनके ट्वीट्स (अब X पोस्ट्स) और रैलियों में उनकी भाषा ऐसी होती है जैसे वो अपने समर्थकों से कॉफी शॉप में गप्पें मार रहे हों। ट्रम्प का “अमेरिका फर्स्ट” का नारा उनकी नेशनलिस्ट सोच को दिखाता है, लेकिन ये इतना सख्त है कि कई बार उनके दोस्त देश भी नाराज हो जाते हैं।
ट्रम्प का लीडरशिप स्टाइल रिएक्टिव है। वो तुरंत फैसले लेते हैं—जैसे 2025 में फिर से सत्ता में आने के बाद H-1B वीजा पर सख्ती या चाइना और दूसरे देशों पर ट्रेड टैरिफ्स। उनकी सोच शॉर्ट-टर्म गेन्स पर ज्यादा रहती है, न कि लंबे समय की रणनीति पर। लेकिन उनकी ताकत ये है कि वो अपने वोटर बेस को एकदम पक्का पकड़े रखते हैं। उनकी रैलियां और स्पीचेस में वो ऐसा जोश भरते हैं कि लोग उनके लिए दीवाने हो जाते हैं।
दोस्ती और तनाव: भारत-अमेरिका ट्रेड रिलेशन्स
ट्रम्प और मोदी की दोस्ती की बात तो सब जानते हैं। 2019 में ह्यूस्टन का “हाउडी मोदी” इवेंट हो या 2020 में अहमदाबाद में “नमस्ते ट्रम्प”, दोनों ने एक-दूसरे की तारीफ में कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन 2025 तक आते-आते ये दोस्ती कुछ पेचीदा हो गई है। ट्रम्प की “अमेरिका फर्स्ट” पॉलिसी की वजह से भारत को कई बार नुकसान उठाना पड़ रहा है।
ट्रेड टैरिफ्स का झटका
ट्रम्प ने 2025 में कई देशों पर टैरिफ्स बढ़ाए, और भारत भी इससे अछूता नहीं रहा। जैसे, भारतीय स्टील और एल्यूमिनियम पर अमेरिका ने टैरिफ्स लगाए, जिससे भारत के एक्सपोर्ट्स को नुकसान हुआ। दूसरी तरफ, भारत ने भी जवाबी कार्रवाई की और अमेरिकी प्रोडक्ट्स जैसे बादाम और सेब पर टैरिफ्स बढ़ाए। मोदी की सरकार ने साफ कर दिया कि वो भारत के हितों से समझौता नहीं करेगी, चाहे ट्रम्प कितना ही दोस्त क्यों न हो।
लेकिन ये ट्रेड वॉर दोनों देशों के लिए नुकसानदायक है। भारत का IT सेक्टर और फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री अमेरिका पर बहुत निर्भर है। अगर ट्रम्प और सख्ती करते हैं, तो भारत को यूरोप और रूस जैसे दूसरे मार्केट्स की तरफ ज्यादा ध्यान देना पड़ सकता है। मोदी की रणनीति यहां स्मार्ट है—वो ट्रम्प से बातचीत तो रखते हैं, लेकिन साथ ही BRICS और SCO जैसे मंचों पर भारत की आवाज को और बुलंद करते हैं।
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H-1B वीजा और IT सेक्टर
ट्रम्प ने H-1B वीजा पॉलिसी को और सख्त कर दिया, जिसका सीधा असर भारत के IT प्रोफेशनल्स पर पड़ा। भारत का IT सेक्टर, जो अमेरिका से अरबों डॉलर की कमाई करता है, अब नए रास्ते तलाश रहा है। मोदी की सरकार ने इस मुद्दे पर ट्रम्प से डिप्लोमैटिक बातचीत की कोशिश की, लेकिन ट्रम्प का फोकस अपने वोटर बेस को खुश करने पर है। ऐसे में मोदी ने “आत्मनिर्भर भारत” के तहत डोमेस्टिक टेक इंडस्ट्री को बूस्ट करने की कोशिश तेज कर दी। जैसे, डिजिटल इंडिया के तहत स्टार्टअप्स और AI टेक्नोलॉजी में इन्वेस्टमेंट बढ़ाया जा रहा है।
डिफेंस रिलेशन्स: एक मजबूत कड़ी
अगर ट्रेड में तनाव है, तो डिफेंस में भारत और अमेरिका की साझेदारी मजबूत हो रही है। ट्रम्प और मोदी दोनों ही चाइना को काउंटर करने के लिए QUAD (अमेरिका, भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया) को और मजबूत करना चाहते हैं। 2025 में QUAD के तहत कई जॉइंट मिलिट्री ड्रिल्स और टेक्नोलॉजी शेयरिंग डील्स हुए हैं। जैसे, अमेरिका से ड्रोन टेक्नोलॉजी और फाइटर जेट्स के लिए डील्स पर बात चल रही है।
मोदी की स्ट्रैटेजी यहां साफ है—वो अमेरिका से डिफेंस टेक्नोलॉजी लेते हैं, लेकिन रूस के साथ पुराने रिश्तों को भी बनाए रखते हैं। मिसाल के तौर पर, भारत रूस से S-400 मिसाइल सिस्टम ले रहा है, जिस पर ट्रम्प की सरकार ने नाराजगी दिखाई, लेकिन मोदी ने साफ कर दिया कि भारत अपनी सिक्योरिटी के लिए किसी एक देश पर डिपेंड नहीं करेगा।
ट्रम्प का अप्रोच डिफेंस में भी उनके बिजनेस माइंड को दिखाता है। वो चाहते हैं कि भारत अमेरिका से ज्यादा हथियार खरीदे, लेकिन उनकी शर्तें भारत के लिए हमेशा फायदेमंद नहीं होतीं। फिर भी, मोदी की डिप्लोमेसी की वजह से भारत-अमेरिका डिफेंस रिलेशन्स में कोई बड़ा टकराव नहीं हुआ।
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जनता का मूड और भविष्य
मोदी और ट्रम्प दोनों ही अपनी जनता के बीच रॉकस्टार जैसे हैं। लेकिन जहां मोदी की इमेज एक विजनरी लीडर की है, जो देश को 2047 तक डेवलप्ड नेशन बनाना चाहता है, वहीं ट्रम्प की इमेज एक ऐसे लीडर की है जो तुरंत रिजल्ट्स चाहता है। भारत में लोग मोदी की सख्त और डिसिप्लिन्ड स्टाइल को पसंद करते हैं, लेकिन ट्रम्प की अनप्रेडिक्टेबल पॉलिसी की वजह से भारत में कुछ लोग अमेरिका से रिश्तों को लेकर सशंकित हैं।
आने वाले सालों में, अगर ट्रम्प की पॉलिसी भारत के लिए और मुश्किलें खड़ी करती हैं, तो मोदी को और स्मार्ट डिप्लोमेसी दिखानी होगी। वो शायद रूस और यूरोप जैसे पार्टनर्स के साथ रिश्तों को और गहरा करें। लेकिन एक बात पक्की है—मोदी और ट्रम्प की दोस्ती और टकराव का खेल भारत-अमेरिका रिलेशन्स को नई दिशा देगा।