Israel-America- ईरान पर जंग: इज़राइल की ज़िद और अमेरिका की डिप्लोमेसी

Israel-America , ये दो देश हमेशा से एक-दूसरे के गहरे दोस्त रहे हैं। लेकिन मई 2025 में इनके बीच कुछ ठन गई है। बात ईरान की परमाणु नीति को लेकर है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने ईरान के साथ बातचीत का रास्ता चुना, जबकि इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू (जिन्हें लोग प्यार से बिबी कहते हैं) ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला करने के मूड में थे। ट्रम्प ने इज़राइल के इस प्लान को ठंडे बस्ते में डाल दिया, और अब इज़राइल को लग रहा है कि अमेरिका उनकी बात को तवज्जो नहीं दे रहा। आइए, इस मसले को समझते हैं कि आखिर ये तनाव क्यों बढ़ रहा है और इसका असर क्या हो सकता है।

पृष्ठभूमि: ईरान का परमाणु डर और इज़राइल की चिंता

इज़राइल के लिए ईरान का परमाणु कार्यक्रम हमेशा से सिरदर्द रहा है। नेतन्याहू तो सालों से कहते आ रहे हैं कि अगर ईरान को परमाणु हथियार मिल गए, तो ये इज़राइल के लिए सबसे बड़ा खतरा होगा। 2015 में जब ओबामा सरकार ने ईरान के साथ परमाणु समझौता (JCPOA) किया था, तब नेतन्याहू ने इसका जमकर विरोध किया था। उन्होंने अमेरिकी संसद में जाकर भड़काऊ भाषण तक दे डाला था। उस वक्त ट्रम्प ने उनका साथ दिया और 2018 में इस समझौते से अमेरिका को बाहर कर लिया। लेकिन अब, 2025 में, ट्रम्प का रुख बदल गया है। वो फिर से ईरान के साथ बातचीत की राह पर हैं, और ये बात इज़राइल को हजम नहीं हो रही।

अप्रैल 2025 में ट्रम्प ने व्हाइट हाउस में नेतन्याहू के सामने ऐलान किया कि अमेरिका ईरान के साथ सीधी बातचीत शुरू कर रहा है। ये सुनकर नेतन्याहू के होश उड़ गए। इज़राइल को डर है कि अगर अमेरिका ने ईरान को यूरेनियम संवर्धन की कुछ छूट दे दी, तो ईरान धीरे-धीरे परमाणु हथियार की दिशा में बढ़ सकता है। इज़राइल का कहना है कि ईरान का पूरा परमाणु ढांचा खत्म होना चाहिए, जैसा कि 2003 में लीबिया ने अपने परमाणु कार्यक्रम को खत्म किया था।

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तनाव का कारण: ट्रम्प का डिप्लोमेसी प्यार

ट्रम्प का मानना है कि डिप्लोमेसी से ईरान को परमाणु हथियार बनाने से रोका जा सकता है। मई 2025 में अमेरिका और ईरान के बीच ओमान में पांचवें दौर की बातचीत शुरू हुई। ट्रम्प की टीम का कहना है कि वो एक ऐसा समझौता चाहते हैं जिसमें ईरान अपनी यूरेनियम संवर्धन की क्षमता को सीमित करे और अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) को अपने ठिकानों की जांच के लिए खुली छूट दे। लेकिन इज़राइल को ये रास्ता पसंद नहीं।

नेतन्याहू चाहते थे कि अमेरिका इज़राइल के साथ मिलकर ईरान के परमाणु ठिकानों पर हवाई हमले करे। अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने फरवरी 2025 में खुलासा किया था कि इज़राइल 2025 की पहली छमाही में ईरान पर हमले की तैयारी कर रहा है। लेकिन इसके लिए इज़राइल को अमेरिका की मदद चाहिए—हवाई ईंधन भरने, खुफिया जानकारी और टोही विमानों के लिए। ट्रम्प ने इस प्लान को सिरे से खारिज कर दिया। इससे नेतन्याहू की किरकिरी हो गई।

इज़राइल की बेचैनी: क्या अमेरिका हमें भूल गया?

इज़राइल को लग रहा है कि ट्रम्प उनकी बात को अनसुना कर रहे हैं। मई 2025 में इज़राइल ने व्हाइट हाउस को अपनी “रेड लाइन्स” की लिस्ट दी, जिसमें मांग की गई कि ईरान के यूरेनियम संवर्धन ठिकाने और सेंट्रीफ्यूज पूरी तरह खत्म हों, और उसके बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम पर सख्त पाबंदी लगे। लेकिन इज़राइली मीडिया के मुताबिक, व्हाइट हाउस में कोई उनकी बात सुनने को तैयार नहीं।

नेतन्याहू की मुश्किल ये है कि वो ट्रम्प को खुलकर आलोचना नहीं कर सकते। ट्रम्प को वो अपना “बेस्ट फ्रेंड” कहते हैं, और अमेरिका इज़राइल का सबसे बड़ा सैन्य और आर्थिक समर्थक है। मई 2025 में अमेरिकी गृह सुरक्षा सचिव क्रिस्टी नोएम ने तेल अवीव में नेतन्याहू से मुलाकात की और ट्रम्प का संदेश दिया कि दोनों देशों को ईरान नीति पर एकजुट रहना होगा। लेकिन नेतन्याहू को लगता है कि ट्रम्प उनकी सलाह को दरकिनार कर रहे हैं।

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नेतन्याहू की रणनीति: क्या अकेले करेंगे हमला?

इज़राइल अब ये सोच रहा है कि अगर अमेरिका ने ईरान के साथ समझौता कर लिया, तो वो अकेले ही ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला कर सकता है। कुछ इज़राइली सूत्रों का कहना है कि नेतन्याहू इंतज़ार कर रहे हैं कि ट्रम्प की बातचीत नाकाम हो, ताकि वो ट्रम्प को हमले के लिए मना सकें। लेकिन बिना अमेरिकी मदद के ऐसा हमला बहुत मुश्किल है। अमेरिकी खुफिया एजेंसियों का मानना है कि इज़राइल के लिए अकेले ईरान पर हमला करना जोखिम भरा होगा, क्योंकि ईरान ने साफ कह दिया है कि वो किसी भी हमले का करारा जवाब देगा।

ईरान ने अप्रैल और अक्टूबर 2024 में इज़राइल पर ड्रोन और मिसाइल हमले किए थे, जिसके जवाब में इज़राइल ने भी ईरान के ठिकानों पर हमले किए। अगर इज़राइल अब अकेले हमला करता है, तो इसका अंजाम पूरे मध्य पूर्व में युद्ध हो सकता है।

अमेरिका-इज़राइल दोस्ती पर असर

ये तनाव अमेरिका-इज़राइल के रिश्तों को कमज़ोर कर सकता है। ट्रम्प ने पहले इज़राइल को गाज़ा में हमास के खिलाफ खुली छूट दी थी, लेकिन अब उनकी डिप्लोमेसी की चाहत ने नेतन्याहू को मुश्किल में डाल दिया है। कुछ इज़राइली नेता ट्रम्प के खास दूत स्टीव विटकॉफ पर भी नाराज़ हैं, क्योंकि उनका मानना है कि वो कतर जैसे देशों के प्रभाव में आकर इज़राइल पर गाज़ा में युद्धविराम का दबाव डाल रहे हैं।

अमेरिका में भी कुछ लोग ट्रम्प के रुख से नाखुश हैं। कई रिपब्लिकन नेता चाहते हैं कि अमेरिका ईरान पर सख्ती बरते, लेकिन ट्रम्प की डीलमेकिंग की आदत ने उन्हें बातचीत की राह पर डाल दिया। इससे इज़राइल को लग रहा है कि उनकी सिक्योरिटी को लेकर अमेरिका अब उतना गंभीर नहीं है।

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क्या होगा आगे?

इज़राइल और अमेरिका के बीच ये तनाव कोई नई बात नहीं है, लेकिन इस बार मसला गंभीर है। अगर ट्रम्प की बातचीत कामयाब रही और ईरान के साथ कोई समझौता हो गया, तो इज़राइल को इसे स्वीकार करना पड़ सकता है, या फिर वो अकेले ही ईरान पर हमला करने का जोखिम उठाएगा। दूसरी तरफ, अगर बातचीत नाकाम हुई, तो नेतन्याहू को ट्रम्प को अपने साथ लाने का मौका मिल सकता है। लेकिन दोनों ही सूरतों में, मध्य पूर्व में तनाव बढ़ने का खतरा है।

अमेरिका को अब ये तय करना होगा कि वो अपने पुराने दोस्त इज़राइल की बात माने या डिप्लोमेसी के ज़रिए शांति की कोशिश करे। नेतन्याहू के लिए भी ये वक्त आसान नहीं है—वो न तो ट्रम्प से खुलकर टकराव चाहते हैं, न ही ईरान को परमाणु ताकत बनने देना चाहते हैं। इस कहानी का अगला हिस्सा क्या होगा, ये तो वक्त ही बताएगा।

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