European Union का रक्षा खर्च में बढ़ोतरी: यूरोप की सुरक्षा योजना या आर्थिक संकट का संकेत

European Union(यूरोपीय संघ ) ने हाल ही में एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए रक्षा खर्च में भारी वृद्धि की घोषणा की है। यह कदम बढ़ते वैश्विक खतरों, विशेष रूप से रूस-यूक्रेन युद्ध और चीन के बढ़ते प्रभाव के मद्देनजर उठाया गया है। ईयू के नेताओं ने सैन्य क्षमताओं को आधुनिक बनाने और अमेरिका पर निर्भरता कम करने पर जोर दिया है। यह फैसला न केवल यूरोप की सुरक्षा को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम है, बल्कि वैश्विक भू-राजनीति में भी एक नया मोड़ ला सकता है।

यूरोप की सुरक्षा चुनौतियाँ

पिछले कुछ वर्षों में यूरोप ने कई सुरक्षा चुनौतियों का सामना किया है। रूस ने 2014 में क्रीमिया पर कब्जा कर लिया था, और 2022 में यूक्रेन पर पूर्ण पैमाने पर आक्रमण कर दिया। इसके अलावा, चीन का दक्षिण चीन सागर और ताइवान जलडमरूमध्य में बढ़ता दबाव भी यूरोप के लिए चिंता का विषय बन गया है। इन खतरों के बीच, यूरोप ने महसूस किया कि उसकी सैन्य क्षमताएं पर्याप्त नहीं हैं और वह अमेरिका पर अत्यधिक निर्भर है। अमेरिका ने जिस तरह से रूस – युक्रेन युद्ध में किया उससे यूरोप को समझ में आ गया है यूरोपियन यूनियन को अमेरिका में निर्भरता कम करनी होगी

नाटो (NATO) के आंकड़ों के अनुसार, 2022 में केवल 11 ईयू देशों ने अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 2% रक्षा खर्च पर खर्च किया, जबकि अमेरिका ने अपने जीडीपी का 3.5% से अधिक रक्षा पर खर्च किया। यह असंतुलन यूरोप की सुरक्षा नीति में एक बड़ी कमी को उजागर करता है।

ऐतिहासिक फैसला: रक्षा खर्च में भारी वृद्धि

EU नेता इस बात पर सहमत हुए हैं कि अगले पांच वर्षों में रक्षा खर्च में 70 अरब यूरो (लगभग 6,30,000 करोड़ रुपये) की वृद्धि की जाएगी। यह राशि सैन्य आधुनिकीकरण, साइबर सुरक्षा, और रक्षा अनुसंधान एवं विकास पर खर्च की जाएगी। इसके अलावा, ईयू ने एक नई “रक्षा रणनीति” भी तैयार की है, जिसका उद्देश्य सदस्य देशों के बीच सैन्य सहयोग को बढ़ावा देना और संयुक्त सैन्य अभ्यासों को तेज करना है।

इस फैसले के पीछे मुख्य उद्देश्य यह है कि यूरोप अपनी सुरक्षा को मजबूत करे और अमेरिका पर निर्भरता कम करे। पिछले कुछ दशकों में, यूरोप ने अमेरिका के सैन्य संरक्षण पर भरोसा किया है, लेकिन अब यह महसूस किया जा रहा है कि यह निर्भरता यूरोप की स्वतंत्रता और सुरक्षा को खतरे में डाल सकती है।

विशेषज्ञों की राय

विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला यूरोप की सुरक्षा नीति में एक बड़ा बदलाव ला सकता है। डॉ. एना पालासियो, एक प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय संबंध विशेषज्ञ, के अनुसार, “यूरोप ने अंततः यह समझ लिया है कि उसे अपनी सुरक्षा खुद सुनिश्चित करनी होगी। अमेरिका अब वह नहीं है जो पहले था, और यूरोप को अपने हितों की रक्षा के लिए तैयार रहना होगा।”

इसी तरह, जनरल जेम्स स्टावरिडिस, नाटो के पूर्व कमांडर, ने कहा कि “यूरोप का यह कदम वैश्विक सुरक्षा के लिए एक सकारात्मक संकेत है। यह न केवल यूरोप की सुरक्षा को मजबूत करेगा, बल्कि नाटो के लिए भी फायदेमंद होगा।”

अमेरिका पर निर्भरता कम करने की जरूरत

यूरोप ने लंबे समय से अमेरिका के सैन्य संरक्षण पर भरोसा किया है। नाटो के माध्यम से, अमेरिका ने यूरोप की सुरक्षा सुनिश्चित की है। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में अमेरिका की विदेश नीति में बदलाव आया है। डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति काल में, अमेरिका ने नाटो देशों से अपने रक्षा खर्च में वृद्धि करने का आग्रह किया था। इसके बाद, जो बाइडेन के नेतृत्व में भी अमेरिका ने यूरोप से अपनी सुरक्षा के लिए अधिक जिम्मेदारी लेने की अपेक्षा की थी . डोनाल्ड ट्रम्प के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद, ट्रम्ट में बड़ा हमला युरोप को लेकर किया था 

इस पृष्ठभूमि में, यूरोप ने महसूस किया कि उसे अपनी सुरक्षा खुद सुनिश्चित करनी होगी। यह न केवल आर्थिक रूप से फायदेमंद है, बल्कि यह यूरोप की स्वतंत्रता और संप्रभुता को भी मजबूत करेगा।

सैन्य आधुनिकीकरण पर जोर

ईयू की नई रक्षा रणनीति में सैन्य आधुनिकीकरण पर विशेष जोर दिया गया है। यूरोप ने महसूस किया है कि उसकी सैन्य तकनीक और उपकरण पुराने हो चुके हैं और उन्हें आधुनिक खतरों से निपटने के लिए अपग्रेड करने की जरूरत है। इसके लिए, ईयू ने नई तकनीकों जैसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), साइबर सुरक्षा, और ड्रोन तकनीक में निवेश करने का फैसला किया है।

उदाहरण के लिए, फ्रांस और जर्मनी ने संयुक्त रूप से एक नई पीढ़ी के लड़ाकू विमान (फ्यूचर कॉम्बैट एयर सिस्टम) के विकास पर काम शुरू किया है। इसके अलावा, EU ने साइबर सुरक्षा को मजबूत करने के लिए एक नया “साइबर शील्ड” कार्यक्रम भी शुरू किया है।

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रूस-यूक्रेन युद्ध ने यूरोप को यह एहसास दिलाया है कि उसे अपनी सैन्य तैयारियों को गंभीरता से लेना चाहिए। यूक्रेन को दी गई सैन्य सहायता ने यूरोप की सैन्य कमजोरियों को उजागर किया है। उदाहरण के लिए, यूरोप के पास पर्याप्त मात्रा में गोला-बारूद और हथियार नहीं हैं, जिससे यूक्रेन को तत्काल सहायता प्रदान करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

आलोचनाएं और चुनौतियाँ

हालांकि यह फैसला यूरोप की सुरक्षा के लिए एक बड़ा कदम है, लेकिन इसे लेकर कुछ आलोचनाएं भी हैं। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि रक्षा खर्च में इतनी बड़ी वृद्धि से यूरोप के सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों और अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इसके अलावा, सभी ईयू देशों के बीच सैन्य सहयोग को मजबूत करना एक बड़ी चुनौती होगी, क्योंकि प्रत्येक देश की अपनी सुरक्षा प्राथमिकताएं और हित हैं।

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यूरोपीय संघ का यह ऐतिहासिक फैसला न केवल यूरोप की सुरक्षा को मजबूत करेगा, बल्कि वैश्विक भू-राजनीति में भी एक नया मोड़ ला सकता है। यह फैसला यूरोप की स्वतंत्रता और संप्रभुता को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। हालांकि, इसके सामने कई चुनौतियाँ हैं, लेकिन यदि यूरोप इन चुनौतियों को सफलतापूर्वक पार कर लेता है, तो यह न केवल यूरोप के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक सकारात्मक संकेत होगा।

इस फैसले से यह स्पष्ट है कि यूरोप अब अपनी सुरक्षा के लिए खुद जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार है, और यह वैश्विक सुरक्षा के लिए एक नए युग की शुरुआत हो सकती है।

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