Mosques covered in UP: यूपी में होली से पहले मस्जिदों पर तिरपाल, आखिर क्यों?

Mosques covered in UP  :  उत्तर प्रदेश में होली के त्योहार से पहले मस्जिदों को तिरपाल से ढकने की परंपरा एक प्रशासनिक और सामाजिक रणनीति के रूप में विकसित हो चुकी है। विशेष रूप से बरेली, शाहजहांपुर, मुरादाबाद, अलीगढ़ और संभल जैसे शहरों में इस उपाय को लागू किया जाता है ताकि होली के रंग मस्जिदों की दीवारों पर न पड़ें और किसी भी संभावित सांप्रदायिक तनाव को रोका जा सके। यह प्रथा पिछले 6-7 वर्षों से लगातार चली आ रही है और सामाजिक सौहार्द बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। इस लेख में हम इस पूरे परिप्रेक्ष्य का विस्तार से विश्लेषण करेंगे और यह समझने का प्रयास करेंगे कि क्या यह एक स्थायी समाधान है या केवल एक अस्थायी उपाय।

Also Reading : Indian Cinema- कुछ महानतम फिल्में और उन्हें खास बनाने वाली बातें

यह प्रथा क्यों शुरू हुई?

होली रंगों और खुशियों का त्योहार है, लेकिन कुछ मामलों में यह सांप्रदायिक तनाव का कारण भी बन जाता है। उत्तर प्रदेश में कई बार ऐसी घटनाएं हुई हैं जहां कुछ असंतुष्ट तत्वों ने मस्जिदों पर रंग फेंककर सांप्रदायिक भावनाएं भड़काने की कोशिश की। इन घटनाओं को रोकने के लिए प्रशासन ने यह कदम उठाया।

सुरक्षा का पहलू

  •  मस्जिदों को टारपौलिन से ढकने का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि होली के दौरान किसी भी तरह की अप्रिय घटना न हो।
  • यह कदम स्थानीय हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच सद्भाव बनाए रखने के लिए उठाया जाता है।

वास्तविक उदाहरण

2017 में शाहजहांपुर में एक मस्जिद पर रंग फेंकने की घटना के बाद स्थानीय प्रशासन ने इस प्रथा को शुरू किया।

सरकारी आंकड़े और सांप्रदायिक तनाव में गिरावट

सरकारी आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि मस्जिदों को ढकने और सुरक्षा उपायों को लागू करने के बाद सांप्रदायिक झड़पों में उल्लेखनीय कमी आई है।

  • 2015: होली के दौरान उत्तर प्रदेश में 20 से अधिक सांप्रदायिक झड़पें दर्ज की गईं।
  • 2018: तिरपाल लगाने की नीति अपनाने के बाद घटनाओं की संख्या घटकर 5 रह गई।
  • 2018 में मुरादाबाद में एक मस्जिद पर रंग गिरने के कारण दो समुदायों के बीच झड़प हुई थी। हालात बिगड़ने से पहले ही प्रशासन ने तुरंत कार्रवाई की और तब से हर साल मस्जिदों को तिरपाल से ढकने की व्यवस्था की जा रही है।

  • 2021 में अलीगढ़ में भी ऐसा ही एक मामला सामने आया था, जहां स्थानीय प्रशासन की सूझबूझ से बड़ा विवाद होने से बच गया

  • 2023: पिछले वर्ष होली के दौरान कोई बड़ी सांप्रदायिक घटना नहीं घटी, जिससे यह संकेत मिलता है कि यह उपाय अत्यंत प्रभावी रहा है।
  • 2024: प्रशासन ने 50 से अधिक संवेदनशील क्षेत्रों में विशेष सुरक्षा बलों को तैनात किया।

होली और रमज़ान का संयोग: प्रशासनिक चुनौती

2025 में होली और रमज़ान एक ही समय पर पड़ रहे हैं, जिससे प्रशासन के लिए एक अतिरिक्त चुनौती उत्पन्न हुई है।

होली जुलूस और जुमे की नमाज़ का समायोजन

  • प्रशासन दोनों कार्यक्रमों के समय को समायोजित करने का प्रयास कर रहा है।
    • धार्मिक नेताओं द्वारा अपील:

  • धार्मिक समुदायों के नेताओं ने जनता से अपील की है कि वे दोनों त्योहारों की गरिमा बनाए रखें।
  • अतिरिक्त सुरक्षा बलों की तैनाती: पुलिस प्रशासन ने संवेदनशील क्षेत्रों में अतिरिक्त बलों को तैनात किया है ताकि किसी भी अप्रिय स्थिति को टाला जा सके।

स्थानीय लोगों की राय

स्थानीय लोगों का मानना है कि यह कदम सही दिशा में है। संभल के एक व्यापारी अनीस अहमद कहते हैं, “हर साल हमें डर रहता था कि कोई रंग मस्जिद पर न गिरा दे। लेकिन अब तिरपाल लगने से हम निश्चिंत रहते हैं।”

बरेली के एक निवासी रामप्रसाद का कहना है, “होली भाईचारे का त्योहार है। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी भी धर्मस्थल की गरिमा बनी रहे। यह पहल सराहनीय है।”

Also Reading : “Yogi Adityanath का बड़ा बयान: ‘अबू आजमी को UP भेजो, हम करेंगे इलाज’

उत्तर प्रदेश में होली के दौरान मस्जिदों को टारपौलिन से ढकने की प्रथा सुरक्षा और सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने के लिए उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है। हालांकि, इसे लेकर स्थानीय समुदायों की प्रतिक्रिया मिली-जुली है। भविष्य में इस प्रथा को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए सामुदायिक सहयोग और जागरूकता अभियानों की जरूरत है।

होली रंगों और खुशियों का त्योहार है, और इसे सभी धर्मों और समुदायों के लोगों के साथ मिलकर मनाना चाहिए। यही सच्ची भारतीयता है।

One thought on “Mosques covered in UP: यूपी में होली से पहले मस्जिदों पर तिरपाल, आखिर क्यों?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *