Vladimir Putin Ukraine ceasefire : रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने गुरुवार को यूक्रेन संघर्ष में अमेरिका के 30-दिवसीय युद्धविराम प्रस्ताव पर पहली बार प्रतिक्रिया दी। एक प्रेस ब्रीफिंग के दौरान उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई वैश्विक नेताओं को **”धन्यवाद”** कहा, जिन्होंने “अपनी प्लेट में बहुत कुछ होने के बावजूद” यूक्रेन मुद्दे पर ध्यान दिया। पुतिन के इस बयान और मोदी की “यह युद्ध का दौर नहीं” वाली टिप्पणी ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में नए सिरे से चर्चा छेड़ दी है। आइए, समझते हैं कि क्या है पूरा मामला और क्यों भारत की भूमिका यहाँ अहम है?
Also Reading : Russia-Ukraine War- War या Peace? रूस के फैसले पर टिका Ukraine का भविष्य
पुतिन का बयान: “ट्रम्प, मोदी और दुनिया के नेताओं का शुक्रिया!”
गुरुवार को मॉस्को में हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में पुतिन ने कहा:
“सबसे पहले, मैं अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का शुक्रिया अदा करना चाहूंगा, जिन्होंने यूक्रेन समस्या पर इतना ध्यान दिया। हम सभी के पास अपनी प्लेट में बहुत कुछ है, लेकिन चीन के अध्यक्ष, भारत के प्रधानमंत्री, ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति जैसे नेता इस मुद्दे पर समय दे रहे हैं। हम उनके प्रति आभारी हैं, क्योंकि यह मानवीय जानमाल के नुकसान को रोकने के पवित्र उद्देश्य के लिए है।”
यह बयान ऐसे समय आया है जब अमेरिका ने यूक्रेन में 30 दिनों के “मानवीय युद्धविराम” का प्रस्ताव रखा है, ताकि नागरिकों को राहत पहुंचाई जा सके। पुतिन ने इस प्रस्ताव पर सीधा जवाब तो नहीं दिया, लेकिन उनकी टिप्पणी से साफ लगता है कि रूस अंतरराष्ट्रीय दबाव को गंभीरता से ले रहा है।
मोदी ने ट्रम्प से कहा था: “भारत न्यूट्रल नहीं, शांति के पक्ष में है!”
इससे पहले, पिछले महीने व्हाइट हाउस में ट्रम्प के साथ बैठक में PM मोदी ने साफ किया था कि “यूक्रेन-रूस युद्ध में भारत न्यूट्रल नहीं है।” उन्होंने कहा “भारत शांति के पक्ष में है। मैंने पुतिन से कहा है कि यह युद्ध का दौर नहीं है। मैं राष्ट्रपति ट्रम्प के प्रयासों का समर्थन करता हूँ।”**
मोदी की यह टिप्पणी महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत ने अब तक यूक्रेन युद्ध पर रूस के खिलाफ सीधे निंदा प्रस्तावों में वोट नहीं दिया है। लेकिन “शांति के पक्ष” की बात से साफ है कि भारत चाहता है कि युद्ध जल्द खत्म हो और बातचीत का रास्ता अपनाया जाए।
4 बड़े सवाल: पुतिन के बयान और भारत की भूमिका
1. क्यों पुतिन ने ट्रम्प और मोदी को थैंक्यू कहा?
पुतिन का यह बयान रणनीतिक तारीफ लगता है। दरअसल, अमेरिका और भारत दोनों ही रूस के लिए अहम हैं:
# अमेरिका
ट्रम्प ने हाल में NATO देशों ( खासतौर पर यूरोपिय देशों ) से रक्षा बजट बढ़ाने को कहा है, जिससे रूस को लग सकता है कि अमेरिका यूक्रेन से ध्यान हटा रहा है।
# भारत
रूस का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता और UN में मित्र देश। मोदी की “शांति” वाली बात से पुतिन को लगा होगा कि भारत सीधे रूस विरोधी गुट में नहीं जाएगा।
2. अमेरिका का 30-दिवसीय युद्धविराम प्रस्ताव: क्या है प्लान?
अमेरिका ने यूक्रेन में “मानवीय संकट” को कम करने के लिए यह प्रस्ताव रखा है। इसके तहत:
– 30 दिनों तक लड़ाई रुकेगी।
– घायलों को इलाज और नागरिकों को सुरक्षित निकाला जाएगा।
– रूस और यूक्रेन के बीच शांति वार्ता के लिए माहौल बनेगा।
लेकिन रूस ने अभी तक इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया है। पुतिन का बयान इस ओर इशारा करता है कि वह दबाव में हैं, लेकिन सीधे हाँ या ना नहीं कह रहे।
3. भारत की नीति: “न्यूट्रल नहीं, शांति का पैरोकार”
भारत ने यूक्रेन युद्ध में “बैलेंस्ड स्टैंस” अपनाया है:
– रूस से तेल और हथियार खरीदना जारी रखा।
– यूक्रेन को मानवीय सहायता दी।
– UN में रूस के खिलाफ वोट नहीं दिया, लेकिन युद्ध की निंदा की।
मोदी की “यह युद्ध का दौर नहीं” वाली टिप्पणी से साफ है कि भारत चाहता है कि रूस युद्ध रोके, लेकिन साथ ही वह रूस के साथ रिश्ते भी नहीं तोड़ना चाहता यानि रूस को नाराज नही करना चाहता है .
4. क्या चीन और ब्राज़ील का रुख भी बदलेगा?
पुतिन ने चीन, ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका का भी जिक्र किया। ये सभी देश BRICS के सदस्य हैं और रूस के करीब माने जाते हैं। अगर ये देश भी युद्धविराम का समर्थन करते हैं, तो रूस पर दबाव बढ़ेगा। हालांकि, चीन अभी तक स्पष्ट रुख नहीं दिखा रहा
विश्लेषण: पुतिन क्यों नहीं चाहते युद्धविराम?
रूस के लिए यूक्रेन युद्ध **रणनीतिक जीत** का मामला है। पुतिन चाहते हैं कि:
1. यूक्रेन NATO में शामिल न हो।
2. पूर्वी यूक्रेन (डोनबास) रूस के नियंत्रण में आए।
3. पश्चिमी देश रूस पर प्रतिबंध हटाएँ।
अगर रूस युद्धविराम मान भी लेता है, तो उसे इन शर्तों पर बातचीत करनी होगी। फिलहाल, यूक्रेन और पश्चिमी देश रूस की माँगों को मानने को तैयार नहीं हैं। इसलिए, पुतिन का “धन्यवाद” भरा बयान शायद सिर्फ समय काटने की रणनीति हो या फिर वाकई रूस ये चाहते है कोई ऐसा समाधान निकले कि इससे सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टुटे . यानि रूस को मिले ज्यादा फायदा
भारत के लिए क्या है चुनौती?
भारत की मुश्किल यह है कि उसे रूस और अमेरिका के बीच संतुलन बनाना है:
# रूस:
रक्षा साझेदारी, यूरेनियम आपूर्ति, और UN में समर्थन के लिए जरूरी।
# अमेरिका
टेक्नोलॉजी, व्यापार, और चीन के खिलाफ मोर्चे के लिए अहम।
क्या होगा आगे? 3 संभावित परिदृश्य
1. युद्धविराम स्वीकार : अगर रूस प्रस्ताव मानता है, तो यूक्रेन में नागरिकों को राहत मिलेगी, लेकिन शांति वार्ता में समझौता मुश्किल होगा।
2. युद्ध जारी रूस पूर्वी यूक्रेन पर कब्जा जमाने की कोशिश करेगा, जिससे संघर्ष लंबा खिंचेगा।
3. भारत की मध्यस्थता अगर भारत, चीन और ब्राज़ील मिलकर शांति वार्ता का रास्ता खोलते हैं, तो यह बड़ी कूटनीतिक जीत होगी।
Also Reading : European Union का रक्षा खर्च में बढ़ोतरी: यूरोप की सुरक्षा योजना या आर्थिक संकट का संकेत
“शांति का रास्ता ही असली जीत है”
पुतिन का बयान और मोदी की नीति दोनों ही दिखाते हैं कि दुनिया **युद्ध से थक चुकी** है। भारत जैसे देशों की भूमिका अहम है, क्योंकि वे पश्चिम और रूस के बीच पुल बना सकते हैं। आने वाले दिनों में अगर यूक्रेन में शांति की कोई उम्मीद दिखती है, तो उसमें भारत का योगदान जरूर होगा।
क्या आप जानते हैं?
– यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से भारत ने रूस से 3 गुना ज्यादा तेल खरीदा है।
– NATO देशों ने अब तक यूक्रेन को 100 अरब डॉलर से ज्यादा का हथियार दिया है।
तो अगली बार जब यूक्रेन का जिक्र हो, तो याद रखिए—यह सिर्फ एक युद्ध नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की राजनीति और अर्थव्यवस्था का टर्निंग प्वाइंट है!