Disinformation Warfare: आजकल की दुनिया में जंग सिर्फ बारूद और हथियारों से नहीं लड़ी जाती, बल्कि सोशल मीडिया और न्यूज़ चैनलों पर फैलने वाली झूठी खबरों से भी। मई 2025 में भारत की “ऑपरेशन सिंदूर” के बाद, जिसमें भारत ने पाकिस्तान और PoK में आतंकी ठिकानों को तबाह किया, पाकिस्तान ने झूठी खबरों का एक ऐसा जाल बिछाया कि भारत को ग्लोबल लेवल पर अपनी साख बचाने की जंग लड़नी पड़ रही है। ऐसे में सवाल उठता है—क्या भारत और रूस मिलकर इस डिसइन्फॉर्मेशन वॉर में पाकिस्तान की नकली कहानियों का जवाब दे सकते हैं? रूस, जो इन्फॉर्मेशन वॉरफेयर में माहिर है, और भारत, जो अपनी सच्चाई को दुनिया तक पहुंचाना चाहता है, क्या इस जंग में एक साथ आ सकते हैं? आइए, इस मसले को करीब से समझते हैं।
ऑपरेशन सिंदूर और पाकिस्तान की झूठी कहानियां
22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले, जिसमें 26 लोग मारे गए, के जवाब में भारत ने 7 मई को “ऑपरेशन सिंदूर” लॉन्च किया। इस ऑपरेशन में भारतीय सेना ने पाकिस्तान और PoK में 9 आतंकी ठिकानों पर सटीक हमले किए, जिसमें 100 से ज्यादा आतंकियों को मार गिराया गया। लेकिन पाकिस्तान ने इसका जवाब हथियारों से कम और झूठी खबरों से ज्यादा दिया। सोशल मीडिया पर पाकिस्तानी अकाउंट्स ने फर्जी वीडियो और तस्वीरें वायरल कर दीं—कभी दावा किया कि पहलगाम हमला भारत ने खुद करवाया, तो कभी कहा कि भारत की S-400 डिफेंस सिस्टम को उनके मिसाइल्स ने तबाह कर दिया। न्यूज़18 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एक पाकिस्तानी न्यूज़ चैनल ने तो ये तक दावा कर दिया कि पाकिस्तान ने भारत की पावर सिस्टम को हैक कर लिया है, जो पूरी तरह झूठ था।
पाकिस्तान की ये हरकतें नई नहीं हैं। लेकिन इस बार स्केल बड़ा था। टेक पॉलिसी प्रेस की एक स्टडी बताती है कि भारत-पाकिस्तान के बीच ये सबसे तगड़ा डिसइन्फॉर्मेशन वॉर था, जिसमें दोनों देश अपनी-अपनी नैरेटिव को कंट्रोल करने की कोशिश में लगे थे। पाकिस्तान में मेनस्ट्रीम मीडिया ने भी फर्जी खबरें फैलाईं, जिससे सोशल मीडिया पर ट्रोल्स को और हवा मिली। ऐसे में भारत को अपनी सच्चाई को दुनिया तक पहुंचाने में मुश्किल हो रही है।
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रूस का इन्फॉर्मेशन वॉरफेयर में दबदबा
रूस की बात करें, तो वो इन्फॉर्मेशन वॉरफेयर में पुराना खिलाड़ी है। सोवियत यूनियन के ज़माने से ही रूस प्रोपेगैंडा और डिसइन्फॉर्मेशन में माहिर रहा है। कोल्ड वॉर के दौरान रूस ने “ऑपरेशन इन्फेक्शन” चलाया, जिसमें अमेरिका के खिलाफ फर्जी खबरें फैलाई गईं कि एड्स वायरस को अमेरिकी लैब में बनाया गया था। हाल के सालों में भी रूस ने यूक्रेन क्राइसिस और 2016 के अमेरिकी चुनावों में डिसइन्फॉर्मेशन का इस्तेमाल करके अपनी ताकत दिखाई है।
रूस की खासियत ये है कि वो दूसरों की झूठी कहानियों को पकड़ने और काउंटर करने में भी माहिर है। रूस के पास साइबर वॉरफेयर यूनिट्स हैं, जो सोशल मीडिया पर फेक न्यूज़ को ट्रैक कर सकती हैं और जवाबी नैरेटिव तैयार कर सकती हैं। भारत, जो अभी इस फील्ड में नया-नया कदम रख रहा है, रूस की इस एक्सपर्टीज से बहुत कुछ सीख सकता है।
भारत को क्यों चाहिए रूस की मदद?
भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती ये है कि वो अपनी सच्चाई को ग्लोबल लेवल पर कैसे पहुंचाए। ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत ने 70 देशों के डिप्लोमेट्स को ब्रीफिंग दी, जिसमें रूस भी शामिल था। भारत ने साफ किया कि ये ऑपरेशन आतंकवाद के खिलाफ था, न कि पाकिस्तान की सेना के खिलाफ। लेकिन पाकिस्तान की फेक न्यूज़ ने भारत की इमेज को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की। कोलंबिया जर्नलिज्म रिव्यू के मुताबिक, इस तनाव के दौरान सोशल मीडिया पर फर्जी वीडियो—जैसे इजरायल के हमले या वीडियो गेम के क्लिप्स—को भारत-पाकिस्तान की जंग के नाम पर वायरल किया गया।
भारत की अपनी साइबर सिक्योरिटी यूनिट्स ने तो पाकिस्तान के 15 लाख से ज्यादा साइबर अटैक्स को नाकाम कर दिया, लेकिन नैरेटिव की जंग में भारत अभी पीछे है। भारत को एक ऐसा सिस्टम चाहिए जो न सिर्फ फेक न्यूज़ को पकड़े, बल्कि उसका जवाब भी दे सके। रूस की टेक्नोलॉजी और अनुभव भारत के लिए गेम-चेंजर साबित हो सकता है। मिसाल के तौर पर, रूस की मदद से भारत एक जॉइंट टास्क फोर्स बना सकता है, जो सोशल मीडिया पर फेक न्यूज़ को मॉनिटर करे और तुरंत काउंटर नैरेटिव लॉन्च करे।
भारत-रूस का जॉइंट प्लान: क्या हो सकता है?
भारत और रूस पहले से ही डिफेंस और एनर्जी सेक्टर में करीबी पार्टनर हैं। ऑपरेशन सिंदूर में भारत की S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम, जो रूस से ली गई थी, ने शानदार काम किया। अब दोनों देश डिसइन्फॉर्मेशन की जंग में भी हाथ मिला सकते हैं। कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि भारत और रूस एक जॉइंट साइबर वॉरफेयर यूनिट बना सकते हैं, जो खासतौर पर पाकिस्तान और चीन जैसे देशों से आने वाली फेक न्यूज़ को टारगेट करे।
रूस भारत को अपनी “हाइब्रिड वॉरफेयर” स्ट्रैटेजी सिखा सकता है, जिसमें प्रोपेगैंडा, साइबर अटैक्स और पब्लिक ओपिनियन को मैनेज करना शामिल है। साथ ही, दोनों देश मिलकर एक ग्लोबल मीडिया कैंपेन चला सकते हैं, जिसमें भारत की सच्चाई को दुनिया तक पहुंचाया जाए। मिसाल के तौर पर, रूस की RT और भारत की ANI या PIB मिलकर एक जॉइंट ब्रॉडकास्ट सिस्टम बना सकते हैं, जो ऑपरेशन सिंदूर जैसे मिशन्स की सही जानकारी दुनिया तक पहुंचाए।
चुनौतियां और आगे की राह
हालांकि, भारत-रूस का ये कोलैबोरेशन इतना आसान नहीं होगा। रूस की अपनी जियोपॉलिटिकल मजबूरियां हैं—वो चीन के साथ भी करीबी रिश्ते रखता है, जो पाकिस्तान का सबसे बड़ा सपोर्टर है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद रूस ने तनाव कम करने की बात तो की, लेकिन उसने भारत का खुलकर समर्थन नहीं किया। ऐसे में भारत को सावधानी से कदम उठाने होंगे, ताकि रूस की न्यूट्रैलिटी उसके खिलाफ न जाए।
दूसरी चुनौती है भारत की अपनी सोशल मीडिया पॉलिसी। द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत में भी कुछ हिंदुत्ववादी अकाउंट्स ने उन लोगों को टारगेट किया, जो जंग के खिलाफ थे। यहां तक कि विदेश सचिव विक्रम मिस्री की बेटी का फोन नंबर भी लीक कर दिया गया। भारत को पहले अपने घर में फेक न्यूज़ और ट्रोलिंग को कंट्रोल करना होगा, तभी वो ग्लोबल लेवल पर नैरेटिव सेट कर पाएगा।
पाकिस्तान की फेक न्यूज़ ने ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत के सामने एक नई जंग खड़ी कर दी है। इस डिसइन्फॉर्मेशन वॉर में भारत को रूस जैसे पार्टनर की जरूरत है, जो इन्फॉर्मेशन वॉरफेयर में माहिर है। अगर भारत और रूस मिलकर एक जॉइंट स्ट्रैटेजी बनाएं—चाहे वो साइबर वॉरफेयर यूनिट हो या ग्लोबल मीडिया कैंपेन—तो पाकिस्तान की झूठी कहानियों को नाकाम किया जा सकता है। लेकिन इसके लिए दोनों देशों को एक-दूसरे पर भरोसा करना होगा और अपनी-अपनी कमजोरियों को दूर करना होगा। फिलहाल, ये जंग आसान नहीं है, लेकिन भारत और रूस की दोस्ती इसे जीतने की ताकत रखती है।
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