China-Pakistan alliance: बीजिंग का हथियार सप्लाई कैसे बदल रहा है दक्षिण एशिया का युद्धक्षेत्र

ChinaPakistan alliance चीन और पाकिस्तान का रिश्ता कोई नया नहीं है, लेकिन हाल के भारत-पाकिस्तान तनाव ने इस गठजोड़ को एक बार फिर सुर्खियों में ला दिया है। मई 2025 में भारत की ऑपरेशन सिंदूर के बाद, जब भारत ने पाकिस्तान पर सैन्य कार्रवाई की, दुनिया ने देखा कि कैसे चीन का हथियार सप्लाई करना इस क्षेत्र के सैन्य समीकरण को प्रभावित कर रहा है। भारत ने साफ तौर पर कहा कि पाकिस्तान ने चीनी पीएल-15 मिसाइलों का इस्तेमाल किया, और पाकिस्तान ने तो अपने जे-10सी फाइटर जेट्स की तारीफ में चीनी तकनीक का गुणगान भी किया। लेकिन ये सिर्फ हथियारों की बात नहीं है; ये कहानी है चीन की रणनीति, भारत-चीन रिश्तों पर पड़ते दबाव, और क्षेत्रीय शांति की नाजुक डोर की। आइए, इस मसले को करीब से समझें।

चीन का हथियारों का खजाना और पाकिस्तान की ताकत

पिछले कुछ सालों में चीन ने पाकिस्तान को हथियारों का जखीरा दिया है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) के मुताबिक, 2019 से 2023 तक चीन ने पाकिस्तान को 5.28 बिलियन डॉलर के हथियार सप्लाई किए। ये कोई छोटा-मोटा आंकड़ा नहीं है। इसमें शामिल हैं पीएल-15 जैसी घातक एयर-टू-एयर मिसाइलें, जो लंबी दूरी तक मार कर सकती हैं, और जे-10सी फाइटर जेट्स, जिन्हें पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ हाल के संघर्ष में इस्तेमाल किया। ये जेट्स अपनी रडार-चकमा देने वाली तकनीक और मिसाइल क्षमता के लिए जाने जाते हैं।

पाकिस्तान की वायुसेना पहले ही कह चुकी है कि जे-10सी ने उनकी ताकत को कई गुना बढ़ा दिया है। लेकिन ये ताकत सिर्फ पाकिस्तान की नहीं, बल्कि चीन की रणनीति का हिस्सा है। चीन जानता है कि भारत-पाकिस्तान तनाव में पाकिस्तान को मजबूत करके वो भारत पर दबाव बना सकता है। ये एक तरह का शतरंज का खेल है, जहां पाकिस्तान चीन का मोहरा बन रहा है।

भारत-चीन रिश्तों पर बढ़ता तनाव

भारत के लिए ये स्थिति चिंता का सबब है। एक तरफ, भारत और चीन के बीच लद्दाख में सीमा विवाद को सुलझाने की कोशिशें चल रही हैं। दोनों देश 2020 के गलवान झड़प के बाद से तनाव कम करने की दिशा में कदम उठा रहे हैं। लेकिन दूसरी तरफ, चीन का पाकिस्तान को हथियार देना भारत के लिए खतरे की घंटी है। भारत ने साफ कहा है कि चीनी हथियारों का इस्तेमाल न सिर्फ पाकिस्तान की सैन्य ताकत बढ़ा रहा है, बल्कि ये दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन को भी बिगाड़ रहा है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत ने चीनी पीएल-15 मिसाइलों का जिक्र करके दुनिया का ध्यान इस ओर खींचा। इन मिसाइलों को भारत ने अपने एयर डिफेंन्स से मार गिराया .

युद्धविराम और चीनी बाजार का उतार-चढ़ाव

10 मई 2025 को  भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम हुआ। इस युद्धविराम ने न सिर्फ जंग के मैदान को ठंडा किया, बल्कि चीनी शेयर बाजार में भी हलचल मचाई। युद्ध के दौरान चीनी हथियार कंपनियों के शेयरों में उछाल आया था, क्योंकि पाकिस्तान को और हथियारों की सप्लाई की उम्मीद थी। लेकिन युद्धविराम के बाद इन कंपनियों के शेयर 9% तक गिर गए।

ये गिरावट बताती है कि चीन की अर्थव्यवस्था भी इस तनाव से अछूती नहीं है। जब तक भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव था, चीनी हथियार कंपनियों को फायदा हो रहा था। लेकिन जैसे ही युद्धविराम की खबर आई, निवेशकों को डर सताने लगा कि अब हथियारों की मांग कम हो सकती है। ये एक तरह से दिखाता है कि चीन की रणनीति न सिर्फ सैन्य, बल्कि आर्थिक भी है। वो पाकिस्तान को हथियार देकर न सिर्फ भारत पर दबाव बनाना चाहता है, बल्कि अपनी हथियार कंपनियों को भी मुनाफा दिलाना चाहता है।

चीन की कूटनीति: शांति की बात, हथियारों का खेल

युद्धविराम के बाद चीन ने खुद को शांतिदूत के रूप में पेश किया। बीजिंग ने दोनों देशों से संयम बरतने की अपील की और कहा कि वो क्षेत्र में शांति के लिए “रचनात्मक भूमिका” निभाना चाहता है। लेकिन ये बातें सुनने में जितनी अच्छी लगती हैं, हकीकत उतनी साफ नहीं है। एक तरफ चीन शांति की बात करता है, दूसरी तरफ वो पाकिस्तान को हथियारों की सप्लाई बढ़ा रहा है।

ये दोहरा खेल भारत के लिए परेशानी का सबब है। भारत जानता है कि चीन की शांति की अपील के पीछे उसकी अपनी रणनीति है। चीन न तो भारत के साथ सीमा विवाद को पूरी तरह सुलझाना चाहता है, न ही वो पाकिस्तान को कमजोर होने देना चाहता है। ये एक तरह का बैलेंसिंग एक्ट है, जिसमें चीन दोनों तरफ से फायदा उठाने की कोशिश कर रहा है।

दक्षिण एशिया का भविष्य: अनिश्चितता के बादल

चीन-पाकिस्तान का ये गठजोड़ दक्षिण एशिया के भविष्य को और जटिल बना रहा है। भारत के लिए चुनौती सिर्फ पाकिस्तान से नहीं, बल्कि उस चीन से भी है, जो हर कदम पर पाकिस्तान का साथ दे रहा है। भारत को अब अपनी सैन्य और कूटनीतिक रणनीति को और मजबूत करना होगा। चाहे वो अपनी वायुसेना को और आधुनिक बनाना हो, या फिर वैश्विक मंच पर चीन के इस खेल को बेनकाब करना हो।

वहीं, पाकिस्तान के लिए भी ये गठजोड़ पूरी तरह फायदेमंद नहीं है। चीन से मिलने वाले हथियार भले ही उसकी सैन्य ताकत बढ़ा रहे हों, लेकिन इससे उसकी चीन पर निर्भरता भी बढ़ रही है। ये निर्भरता पाकिस्तान की स्वतंत्रता को लंबे समय में प्रभावित कर सकती है।

शांति की राह मुश्किल, लेकिन जरूरी

भारत-पाकिस्तान तनाव और चीन-पाकिस्तान गठजोड़ ने एक बार फिर साबित कर दिया कि दक्षिण एशिया का युद्धक्षेत्र सिर्फ दो देशों तक सीमित नहीं है। इसमें वैश्विक शक्तियां भी शामिल हैं, और चीन इस खेल का एक बड़ा खिलाड़ी है। भारत के लिए जरूरी है कि वो इस चुनौती का सामना न सिर्फ सैन्य ताकत से, बल्कि कूटनीति और आर्थिक रणनीति से भी करे।

चीन की शांति की अपील और हथियारों की सप्लाई का ये दोहरा खेल लंबे समय तक चल सकता है। लेकिन अगर दक्षिण एशिया में स्थायी शांति चाहिए, तो सभी देशों को मिलकर इस तनाव को कम करने की दिशा में काम करना होगा। फिलहाल, युद्धविराम ने कुछ राहत दी है, लेकिन ये राहत कितनी टिकाऊ है, ये तो वक्त ही बताएगा।

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