हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार: इंडिया गठबंधन की नाराजगी और महाराष्ट्र चुनाव के लिए सीख

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राजनीतिक विश्लेषकों ने हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले और एग्जिट पोल में पूर्वानुमान लगाया था कि दस साल बाद कांग्रेस सत्ता में वापस आ जाएगी और भाजपा गिर जाएगी। लेकिन यह आकलन और भविष्यवाणियां पूरी तरह फेल हो गए जब चुनाव हुए। कांग्रेस और उसके सहयोगी दल तीसरी बार भाजपा की सरकार बनती दिखाई दी।

कांग्रेस की रणनीति

इंडिया गठबंधन के घटक दलों ने हरियाणा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस की रणनीति पर सवाल उठाए हैं। घटक दल ने कांग्रेस की नीति पर निशाना साधते हुए कहा कि यह हार कांग्रेस के “अभिमान” से हुई है। कांग्रेस ने सहयोगी दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ा होता तो शायद हार नहीं होती।

कांग्रेस की इस हार पर शिवसेना के नेता संजय राऊत ने खुलकर कहा कि कांग्रेस को अपनी कमियों से सीख लेनी चाहिए। महाराष्ट्र चुनाव को लेकर उन्होंने कांग्रेस को चेतावनी दी कि “जो गलती कांग्रेस ने हरियाणा में की है, वह महाराष्ट्र में न करे।

हरियाणा में गठबंधन की कमी

कांग्रेस ने जम्मू-कश्मीर की तरह हरियाणा में सहयोगी दलों के साथ चुनाव नहीं लड़ा, जैसा कि उसने किया था। इंडिया गठबंधन ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ मिलकर चुनाव में बड़ी जीत हासिल की। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अगर कांग्रेस ने हरियाणा में सहयोगी दलों के साथ चुनाव लड़ा होता, तो भाजपा को बहुत मुश्किल होता।

हरियाणा के चुनावों ने महाराष्ट्र और झारखंड के चुनावों पर भी असर डाला है। झारखंड और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, इसलिए कांग्रेस की रणनीति को देखना महत्वपूर्ण होगा। झारखंड में, कांग्रेस हेमंत सोरेन की झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है, जबकि महाराष्ट्र में शिवसेना (उद्धव गुट) और एनसीपी (शरद पवार गुट) के साथ कांग्रेस का गठबंधन है। इन पार्टियों के बीच अभी तक सीटों का अंतिम निर्णय नहीं हुआ है।

सीटों का वितरण: दूसरा महत्वपूर्ण मुद्दा

कांग्रेस को झारखंड और महाराष्ट्र में सीटों का बंटवारा सबसे बड़ा मुद्दा है। कांग्रेस को हरियाणा चुनाव में गठबंधन नहीं करने की वजह से हार का सामना करना पड़ा, और अब पार्टी को इस हार से सीख लेते हुए सीटों के बंटवारे में गंभीरता से काम करना होगा।

झारखंड में, कांग्रेस हेमंत सोरेन की झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है, जबकि महाराष्ट्र में शिवसेना (उद्धव गुट) और एनसीपी (शरद पवार गुट) के साथ कांग्रेस का गठबंधन है। इन पार्टियों के बीच अभी तक सीटों का अंतिम निर्णय नहीं हुआ है।

झारखंड और महाराष्ट्र में कांग्रेस की चुनौतियां

महाराष्ट्र में शिवसेना (उद्धव गुट) और एनसीपी (शरद पवार गुट) के साथ कांग्रेस का गठबंधन है, लेकिन सीटों के बंटवारे पर अभी भी बहस चल रही है। कांग्रेस को हरियाणा में गठबंधन नहीं करने से हुआ नुकसान महाराष्ट्र में नहीं होना चाहिए, इसलिए उसे सीटों के बंटवारे पर तुरंत निर्णय लेना चाहिए।

झारखंड में, हेमंत सोरेन की पार्टी JMM भी कांग्रेस के साथ है। झारखंड में भी सीटों के बंटवारे को लेकर बहस चल रही है, और कांग्रेस कैसे अपने सहयोगी दलों के साथ काम करती है, यह देखना होगा।

राजनीतिक भविष्य

हरियाणा चुनावों ने कांग्रेस और भारत गठबंधन दोनों को स्पष्ट संदेश दिया है कि अब उनका एकजुट होकर राजनीति करना चाहिए और मतभेदों को छोड़ देना चाहिए। कांग्रेस और उसके सहयोगी दल आने वाले विधानसभा चुनावों में एकजुट होकर रणनीति बना सकते हैं।

कांग्रेस के लिए हरियाणा की हार एक सबक है, और अब वह इस हार से क्या सीख लेकर आगे बढ़ती है। झारखंड और महाराष्ट्र के चुनाव कांग्रेस सहित पूरे भारत गठबंधन को परीक्षण कर सकते हैं।

हरियाणा चुनावों ने कांग्रेस और पूरे भारत गठबंधन को एक कड़ा संदेश दिया है। अब समय आ गया है कि कांग्रेस अपनी गलतियों से सीख ले और आगामी चुनावों में अच्छी तरह से तैयार हो जाए। कांग्रेस को सहयोगी दलों के साथ तालमेल बिठाना, सीटों का सही तरीके से बंटवारा करना और चुनावी रणनीति में सुधार करना चाहिए।

झारखंड और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव कांग्रेस के भविष्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं, और अगर कांग्रेस इन चुनावों में सही रणनीति अपनाती है, तो वह खोई हुई लोकप्रियता वापस पा सकती है।

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