India-Turkey Relation
भारत और तुर्की के बीच तनातनी अब चरम पर है, और इसका असर हर तरफ दिख रहा है। मोदी सरकार ने हाल ही में तुर्की के नए राजदूत को औपचारिक स्वागत देने में देरी की और सेलेबी एयरपोर्ट सर्विसेज जैसी तुर्की कंपनियों की सुरक्षा मंजूरी रद्द कर दी। ये कोई छोटी-मोटी खटपट नहीं, बल्कि एक ठोस डिप्लोमैटिक फ्रीज है, जिसकी वजह है तुर्की का हालिया भारत-पाकिस्तान तनाव में पाकिस्तान का साथ देना। तो, माजरा क्या है? व्यापार, पर्यटन और भारत-तुर्की रिश्तों का भविष्य क्या होगा? आइए, इसे देसी हिंदी अंदाज में समझें।
शुरुआत: तुर्की का पाकिस्तान प्रेम
मुश्किल तब शुरू हुई जब तुर्की ने भारत के ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान का खुलकर समर्थन किया। ऑपरेशन सिंदूर, जो 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में 26 लोगों की जान लेने वाले आतंकी हमले के जवाब में पाकिस्तान और PoK में आतंकी ठिकानों पर सैन्य कार्रवाई थी, ने तुर्की को मौका दे दिया। तुर्की ने न सिर्फ पाकिस्तान को नैतिक समर्थन दिया, बल्कि असिसगार्ड सोंगर ड्रोन, सैन्य कर्मी और कराची में एक युद्धपोत तक भेजा। भारतीयों के लिए ये धोखा था, खासकर तब जब 2023 के भूकंप में भारत ने ऑपरेशन दोस्त के तहत तुर्की की मदद की थी। कांग्रेस विधायक कुलदीप सिंह राठौर ने कहा, “हमने उनकी मुसीबत में साथ दिया, और बदले में वो हमारे दुश्मन को हथियार देते हैं? ये तो पीठ में छुरा घोंपना है!”
भारत ने फटाफट जवाब दिया। सरकार ने तुर्की के राजदूत-नियुक्त अली मुरत एरसॉय के स्वागत को “पुनर्निर्धारण” का बहाना बनाकर टाल दिया, लेकिन साफ था कि ये नाराजगी का इशारा है। इससे भी बड़ा कदम था ब्यूरो ऑफ सिविल एविएशन सिक्योरिटी (BCAS) का सेलेबी एयरपोर्ट सर्विसेज इंडिया की सुरक्षा मंजूरी रद्द करना, जो दिल्ली, मुंबई, चेन्नई समेत नौ बड़े हवाई अड्डों पर ग्राउंड और कार्गो सेवाएं संभालती है। 15 मई 2025 से लागू BCAS के आदेश में “राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं” का हवाला दिया गया, जिसे केंद्रीय उड्डयन मंत्री राम मोहन नायडू ने गैर-परक्राम्य बताया।
सेलेबी का बाहर होना: तुर्की बिजनेस को झटका
सेलेबी कोई छोटी-मोटी कंपनी नहीं है। ये भारत के एविएशन सेक्टर में बड़ा नाम है, जो हर साल 58,000 उड़ानों और 5.4 लाख टन कार्गो को संभालती है और 7,800 कर्मचारियों को रोजगार देती है। दिल्ली के VVIP टेक्निकल एरिया जैसे संवेदनशील इलाकों में इसकी मौजूदगी ने तुर्की के पाकिस्तान समर्थन के बाद खतरे की घंटी बजा दी। सुरक्षा विशेषज्ञ अभिजीत अय्यर-मित्रा ने न्यूज18 को बताया, “सेलेबी का टर्मिनल उस इलाके को देखता है जहां PM मोदी का विमान ऑपरेट होता है। जब उनकी पेरेंट कंपनी का देश हमारे दुश्मन की मदद कर रहा हो, तो ये बड़ा रिस्क है।”
सेलेबी ने इसका विरोध किया, दावा किया कि वो तुर्की सरकार की कंपनी नहीं है और 65% हिस्सेदारी कनाडा, अमेरिका, यूरोप के निवेशकों की है। कंपनी ने “अनुचित” फैसले को पलटने के लिए कानूनी और प्रशासनिक कदम उठाने की बात कही, लेकिन नुकसान हो चुका है। हवाई अड्डे अब AISATS और ब्रिड ग्रुप जैसे वैकल्पिक ग्राउंड हैंडलर्स को लाने की जुगत में हैं। सेलेबी के 7,800 कर्मचारियों का भविष्य अधर में है, हालांकि सरकार ने उन्हें दूसरी जगह समायोजित करने का वादा किया है।
बात सिर्फ सेलेबी तक नहीं रुकी। कॉन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) तुर्की और उसके सहयोगी अजरबैजान के साथ पूर्ण व्यापार बहिष्कार की मांग कर रहा है। सोशल मीडिया पर #BoycottTurkey हैशटैग ट्रेंड कर रहा है। पुणे के सेब व्यापारियों से लेकर उदयपुर के मार्बल निर्यातकों तक, भारतीय कारोबारी तुर्की के सेब और मार्बल छोड़कर देसी या ईरानी विकल्प चुन रहे हैं।
जनता का गुस्सा: हैशटैग से रद्द टिकट तक
भारतीय जनता का गुस्सा सातवें आसमान पर है। सोशल मीडिया पर लोग तुर्की की यात्रा न करने की अपील कर रहे हैं। BJP की मेंबर और एक्ट्रेस रूपाली गांगुली ने ट्वीट किया, “क्या हम तुर्की की बुकिंग्स कैंसिल कर सकते हैं? ये मेरी सभी सेलेब्स और यात्रियों से गुजारिश है। #BoycottTurkey।” उद्योगपति हर्ष गोयनका ने बताया कि पिछले साल भारतीय पर्यटकों ने तुर्की और अजरबैजान की अर्थव्यवस्था में 4,000 करोड़ रुपये डाले, और लोगों से ग्रीस या आर्मेनिया जाने की सलाह दी।
ये बहिष्कार तुर्की की कमर तोड़ रहा है, खासकर उसके पर्यटन सेक्टर को, जो उसकी GDP का 12% है। 2024 में तुर्की ने 3.3 लाख भारतीय पर्यटकों का स्वागत किया, जिन्होंने 291.6 मिलियन डॉलर खर्च किए। लेकिन अब EaseMyTrip, MakeMyTrip, और Ixigo जैसे ट्रैवल प्लेटफॉर्म्स ने तुर्की न जाने की सलाह दी है। बुकिंग्स 60% गिर गईं, और कैंसिलेशन 250% बढ़ गया। गो होमस्टेज ने तुर्किश एयरलाइंस के साथ साझेदारी खत्म कर दी, इसे “राष्ट्रीय हित” बताया। ट्रैवल एजेंट्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया की पूर्व अध्यक्ष ज्योति मायल ने ANI को कहा, “तुर्की की 50% बुकिंग्स रद्द हो चुकी हैं। हम साफ संदेश दे रहे हैं।”
बात सिर्फ पर्यटन तक नहीं। भारतीय फिल्म इंडस्ट्री ने तुर्की में शूटिंग न करने का फैसला किया है। JNU, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, और मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी जैसे संस्थानों ने तुर्की के साथ शैक्षिक संबंध तोड़ दिए। इंडिगो की तुर्किश एयरलाइंस के साथ कोडशेयर डील भी निशाने पर है, और पूर्व BSF चीफ प्रकाश सिंह ने इसे खत्म करने की मांग की।
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आर्थिक असर: 10.4 बिलियन डॉलर का व्यापार खतरे में
भारत-तुर्की व्यापार कोई छोटा-मोटा नहीं—FY24 में ये 10.4 बिलियन डॉलर था, जिसमें भारत ने 6.66 बिलियन डॉलर के इंजीनियरिंग सामान, पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स और दवाएं निर्यात कीं। लेकिन बहिष्कार की लहर इसे पटरी से उतार सकती है। पिछले साल भारत ने तुर्की के TAIS कंसोर्टियम के साथ 2.3 बिलियन डॉलर की जहाज निर्माण डील रद्द की थी, और अब व्यापारी तुर्की आयात छोड़ रहे हैं, जिसका असर बड़ा हो सकता है।
तुर्की की अर्थव्यवस्था, जो पहले से ही उच्च मुद्रास्फीति और कमजोर लीरा से जूझ रही है, ये झटका बर्दाश्त नहीं कर सकती। इसके विदेशी मुद्रा भंडार 20-40 बिलियन डॉलर तक सिमट गए हैं। भारतीय पर्यटकों और व्यापार का नुकसान इस संकट को और गहरा सकता है। भारत के लिए हालांकि नुकसान कम हो सकता है। तुर्की पर 5.2 बिलियन डॉलर का व्यापार अधिशेष और ग्रीस, आर्मेनिया, UAE जैसे सहयोगियों की तरफ बढ़ता कदम भारत को मजबूत स्थिति में रखता है।
राजनीतिक रंग: BJP बनाम कांग्रेस
इस डिप्लोमैटिक फ्रीज ने घरेलू राजनीति में भी भूचाल ला दिया। BJP ने कांग्रेस पर तुर्की बहिष्कार के सवालों से भागने का आरोप लगाया। अमित मालवीय ने ट्वीट किया, “देश गुस्से में है, लेकिन कांग्रेस जनभावना के साथ नहीं खड़ी।” कांग्रेस ने पलटवार किया, पवन खेड़ा ने PM मोदी और विदेश मंत्री S जयशंकर से पूछा कि क्या भारत ने तुर्की के साथ सारे रिश्ते तोड़ दिए। BJP की सहयोगी शिवसेना ने मुंबई में प्रदर्शन किए, हवाई अड्डों पर सेलेबी को हटाने का दबाव बनाया।
ये सिर्फ राजनीति नहीं, देशभक्ति का सवाल है। तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन ने पाकिस्तान के PM शहबाज शरीफ को पूर्ण समर्थन का आश्वासन देकर भारतीय गुस्से को और भड़का दिया। एक X यूजर ने लिखा, “भारत ने भूकंप में तुर्की की मदद की, और वो पाकिस्तान को ड्रोन देते हैं? अब वक्त है उन्हें सबक सिखाने का।”
आगे क्या?
आगे का रास्ता मुश्किल दिखता है। भारत का बहुस्तरीय जवाब—डिप्लोमैटिक तिरस्कार, आर्थिक बहिष्कार, और तुर्की के प्रतिद्वंद्वियों के साथ गठजोड़—दिखाता है कि वो कोई कसर नहीं छोड़ रहा। विश्लेषकों का मानना है कि ये कश्मीर पर तुर्की की भारत-विरोधी बयानबाजी और पाकिस्तान से बढ़ती नजदीकी को रोकने की रणनीति है। लेकिन इसमें जोखिम भी हैं। व्यापार और एविएशन में रुकावट से भारत में लागत बढ़ सकती है, और सेलेबी के बाहर होने से हवाई अड्डों पर अल्पकालिक अफरातफरी मच सकती है।
फिलहाल, जनभावना ही कहानी चला रही है। छुट्टियां रद्द करने से लेकर तुर्की के सेब बहिष्कृत करने तक, भारतीय अपने पैसे से जवाब दे रहे हैं। CAIT के प्रवीण खंडेलवाल ने कहा, “ये सिर्फ आर्थिक नहीं, ये संदेश है कि भारत की ताकत को कम नहीं आंका जा सकता।”
क्या तुर्की पीछे हटेगा? एर्दोगन की जिद को देखते हुए मुश्किल है। लेकिन भारत अपनी आर्थिक और डिप्लोमैटिक ताकत दिखा रहा है, और अंकारा को जल्दी ही इसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है। देसी यात्रियों, व्यापारियों और नीति-निर्माताओं के लिए एक बात साफ है: तुर्की अब नॉटी लिस्ट में है, और माफी से काम नहीं चलेगा।
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