Indian Army – बात 7 मई 2025 की है, जब भारत ने “ऑपरेशन सिंदूर” के तहत पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर (PoK) में नौ आतंकी ठिकानों पर सटीक हमले किए। ये हमले लश्कर-ए-तैयबा (LeT) और जैश-ए-मोहम्मद (JeM) जैसे खूंखार आतंकी संगठनों के अड्डों को नेस्तनाबूद करने के लिए थे। इन संगठनों ने भारत में कई बड़े आतंकी हमले किए हैं, जैसे 2001 का संसद हमला, 2008 का मुंबई हमला और 2019 का पुलवामा हमला। लेकिन इस बार भारत ने सबूतों के साथ ऐसी कार्रवाई की कि पाकिस्तान की आतंकवाद को पनाह देने वाली सच्चाई दुनिया के सामने आ गई।
खुफिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि बहावलपुर में जैश-ए-मोहम्मद का मुख्यालय और मुरिदके में लश्कर-ए-तैयबा का अड्डा आतंकियों को ट्रेनिंग, हथियार और फंडिंग देने का बड़ा केंद्र था। मुरिदके का मार्कज तैबा, जो 82 एकड़ में फैला है, वो तो आतंक की यूनिवर्सिटी जैसा था—जहां 26/11 जैसे हमलों के लिए आतंकियों को तैयार किया जाता था। बहावलपुर का मार्कज सुभान अल्लाह भी कम नहीं था; वहां जैश के सरगना मसूद अजहर के परिवार वाले भी रहते थे। इन ठिकानों पर भारत ने राफेल जेट्स, स्कैल्प मिसाइल्स और हैमर बमों से हमला किया, जिससे 70 से ज्यादा आतंकी मारे गए।
पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) का इन संगठनों से पुराना गठजोड़ है। खुफिया सूत्रों के मुताबिक, ISI न सिर्फ इन आतंकियों को ट्रेनिंग देती थी, बल्कि उनकी रसद और हथियारों का भी इंतजाम करती थी। ऑपरेशन सिंदूर से पहले भारत ने संयुक्त राष्ट्र की 1267 सैंक्शन्स कमेटी को मई और नवंबर 2024 में रिपोर्ट दी थी, जिसमें लश्कर की छद्म शाखा “द रेसिस्टेंस फ्रंट” (TRF) के बारे में बताया गया। TRF ने पहलगाम हमले की जिम्मेदारी ली थी, जिसमें 26 लोग मारे गए थे। लेकिन पाकिस्तान ने UN में TRF का जिक्र हटवाने की कोशिश की, जो उनकी आतंकियों को बचाने की मंशा को दिखाता है।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि पाकिस्तान की ये हरकतें अब बर्दाश्त के बाहर हैं। सुरक्षा विशेषज्ञ हैप्पीमोन जैकब ने कहा, “ऑपरेशन सिंदूर ने भारत की नीति में बड़ा बदलाव दिखाया। अब भारत आतंक के खिलाफ सीधे एक्शन लेगा, बिना ये साबित करने की जरूरत कि पाकिस्तान इसके पीछे है।” ये ऑपरेशन न सिर्फ सैन्य कार्रवाई थी, बल्कि एक डिप्लोमैटिक मैसेज भी कि भारत अब “स्ट्रैटेजिक संयम” की नीति छोड़ चुका है।
पाकिस्तान की इस हरकत ने उसकी इंटरनेशनल इमेज को और खराब किया। न्यूयॉर्क टाइम्स ने इसे “बड़ा उकसावा” बताया, जबकि BBC ने भारत के आतंक के खिलाफ रुख को सही ठहराया। अब सवाल ये है कि क्या फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) और इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड (IMF) जैसी संस्थाएं पाकिस्तान पर और सख्ती करेंगी? क्योंकि आतंक को पनाह देने की वजह से उसकी आर्थिक मदद पर सवाल उठ रहे हैं।
Also Reading : Operation Sindoor( ऑपरेशन सिंदूर) : भारत का पाकिस्तान में आतंकवाद के खिलाफ करारा जवाब
भारत की दोहरी रणनीति: सैन्य ताकत और डिप्लोमैटिक दबाव
ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत ने दो-तरफा रणनीति अपनाई—एक तरफ सैन्य ताकत से आतंकी ठिकानों को तबाह किया, दूसरी तरफ डिप्लोमैटिक मोर्चे पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने की कोशिश की। आइए, इसे थोड़ा और समझते हैं।
सैन्य ताकत: आतंक के ठिकानों पर सटीक हमले
भारत ने इस ऑपरेशन में अपनी सैन्य ताकत का लोहा मनवाया। सेना, नौसेना और वायुसेना ने मिलकर 25 मिनट में नौ ठिकानों को तबाह कर दिया। इनमें बहावलपुर, मुरिदके, कोटली, मुजफ्फराबाद और सियालकोट जैसे इलाके शामिल थे। खास बात ये कि भारत ने पाकिस्तान की सैन्य चौकियों को छुआ तक नहीं, ताकि ये जंग में न बदले। रक्षा मंत्रालय ने इसे “फोकस्ड, मेजर्ड और नॉन-एस्केलेटरी” कार्रवाई बताया।
कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में वीडियो सबूत दिखाए, जिसमें आतंकी ठिकानों के मलबे साफ नजर आए। कोटली का अब्बास कैंप, जो लश्कर के आत्मघाती हमलावरों का ट्रेनिंग सेंटर था, उसे 1:04 बजे सुबह ध्वस्त किया गया। भारत ने ये भी साफ किया कि उसने सिविलियन इलाकों को नुकसान नहीं पहुंचाया, ताकि पाकिस्तान को बहाना न मिले।
डिप्लोमैटिक दबाव: दुनिया को सच्चाई दिखाना
सैन्य कार्रवाई के साथ-साथ भारत ने डिप्लोमैटिक मोर्चे पर भी कमर कस ली। विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने कहा कि खुफिया सूचनाओं से पता चला था कि पाकिस्तान में और हमले की साजिश रची जा रही थी। इसलिए भारत को “राइट टु रिस्पॉन्ड” का इस्तेमाल करना पड़ा। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने स्पेन, फ्रांस, जर्मनी, जापान और कतर जैसे देशों के विदेश मंत्रियों से बात की और ऑपरेशन की वजह बताई।
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवल ने अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो और रूस के NSA सर्गेई शोइगु को भी ब्रीफ किया। भारत ने साफ किया कि उसका इरादा जंग बढ़ाने का नहीं, लेकिन अगर पाकिस्तान ने जवाबी कार्रवाई की तो भारत तैयार है। भारत ने UN सिक्योरिटी काउंसिल के सदस्यों को भी ब्रीफिंग दी, जिसमें पहलगाम हमले में पाकिस्तान के लिंक को उजागर किया।
सबसे बड़ा डिप्लोमैटिक दांव था पाकिस्तान की IMF लोन की समीक्षा की मांग। भारत ने तर्क दिया कि अगर पाकिस्तान आतंक को फंडिंग दे रहा है, तो उसे आर्थिक मदद कैसे मिल सकती है? भारत ने इंडस वाटर ट्रीटी को सस्पेंड करने और अटारी बॉर्डर क्रॉसिंग बंद करने जैसे कदम भी उठाए, ताकि पाकिस्तान पर आर्थिक दबाव बढ़े।
रणनीति की कामयाबी और चुनौतियां
क्या भारत की ये दोहरी रणनीति आतंकवाद को रोक पाएगी? इसका जवाब मिला-जुला है। सैन्य कार्रवाई ने आतंकी संगठनों को बड़ा झटका दिया। जैश के मसूद अजहर ने दावा किया कि उसके 10 परिवारवाले और 4 सहयोगी मारे गए। लेकिन पाकिस्तान ने जवाबी कार्रवाई में LoC पर गोलीबारी की, जिसमें 12 सिविलियन और एक सैनिक मारे गए। इससे तनाव और बढ़ गया।
डिप्लोमैटिक मोर्चे पर भारत को कुछ हद तक कामयाबी मिली। अमेरिका, UK और इजरायल जैसे देशों ने भारत के आतंक के खिलाफ रुख का समर्थन किया। लेकिन पाकिस्तान के पीएम शहबाज शरीफ ने इसे “युद्ध की कार्रवाई” करार दिया और जवाबी कार्रवाई की धमकी दी। CNN ने बताया कि पाकिस्तान ने दावा किया कि हमलों में सिविलियन्स मारे गए, जिसे भारत ने खारिज किया।
IMF लोन पर दबाव डालना भारत के लिए फायदेमंद हो सकता है, क्योंकि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पहले से चरमराई हुई है। लेकिन अगर चीन जैसे देश पाकिस्तान का साथ देते हैं, तो ये रणनीति कमजोर पड़ सकती है।
ऑपरेशन सिंदूर ने न सिर्फ आतंकी ठिकानों को तबाह किया, बल्कि पाकिस्तान की आतंक को पनाह देने वाली नीति को भी बेनकाब किया। भारत की सैन्य और डिप्लोमैटिक रणनीति ने दुनिया को साफ मैसेज दिया कि आतंकवाद के खिलाफ उसका रुख अब और सख्त होगा। लेकिन आगे की राह आसान नहीं। पाकिस्तान की जवाबी कार्रवाइयां और इंटरनेशनल सपोर्ट की कमी भारत के लिए चुनौती बन सकती है। फिर भी, ये ऑपरेशन एक नई शुरुआत है—जहां भारत आतंक के खिलाफ “जीरो टॉलरेंस” की नीति पर डटकर खड़ा है