Indian Diplomacy- ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत का कूटनीतिक दांव: दुनिया सुनेगी हमारी

Indian Diplomacy दोस्तों, भारत ने एक बार फिर दुनिया को दिखा दिया है कि वो अपनी सुरक्षा और सम्मान के साथ कोई समझौता नहीं करता! 22 मई, 2025 के बाद, भारत सरकार ने एक बड़ा कदम उठाया है—सभी दलों के सांसदों की टीमें बनाकर उन्हें दुनिया के बड़े देशों में भेजने का फैसला। मकसद? पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का पर्दाफाश करना और ऑपरेशन सिंदूर की सच्चाई दुनिया को बताना। ये कदम न सिर्फ भारत की कूटनीतिक ताकत को दिखाता है, बल्कि ये भी जाहिर करता है कि भारत अब अपनी बात को और मजबूती से वैश्विक मंच पर रखेगा। चलो, इस पूरी कहानी को समझते हैं कि आखिर माजरा क्या है!

ऑपरेशन सिंदूर: आतंक के खिलाफ भारत का जवाब

पहले थोड़ा बैकग्राउंड समझ लो। 22 अप्रैल, 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में एक भयानक आतंकी हमला हुआ, जिसमें 26 लोग, ज्यादातर पर्यटक, मारे गए। इस हमले की जिम्मेदारी ‘द रेसिस्टेंस फ्रंट’ (TRF) ने ली, जिसे भारत लश्कर-ए-तैयबा का एक हिस्सा मानता है। भारत ने इसे पाकिस्तान की शह पर हुआ हमला बताया। जवाब में, 7 मई को भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ लॉन्च किया, जिसमें पाकिस्तान और PoK में 9 आतंकी ठिकानों पर सटीक हमले किए गए। इन हमलों में 100 से ज्यादा आतंकी मारे गए। भारत का कहना है कि ये हमले सिर्फ आतंकी ढांचे पर थे, न कि आम नागरिकों पर।

लेकिन पाकिस्तान ने इसे उल्टा घुमाने की कोशिश की। उसने दावा किया कि भारत ने बेगुनाह लोगों पर हमले किए और कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाने की कोशिश की। यहीं से भारत ने अपनी कूटनीतिक चाल चली। भारत ने साफ कहा कि कश्मीर हमारा आंतरिक मसला है और इसे द्विपक्षीय तरीके से ही हल किया जाएगा, न कि किसी तीसरे देश की मध्यस्थता से।

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सांसदों की वैश्विक यात्रा: रणनीति क्या है?

अब आते हैं इस बड़े कूटनीतिक कदम पर। भारत सरकार ने फैसला किया है कि 22 मई के बाद 7-8 सांसदों की टीमें बनाकर उन्हें अमेरिका, ब्रिटेन, दक्षिण अफ्रीका, कतर, यूएई और यूएन सिक्योरिटी काउंसिल के सदस्य देशों में भेजा जाएगा। इनमें कांग्रेस के शशि थरूर, भाजपा के रविशंकर प्रसाद और बैजयंत पांडा, जदयू के संजय कुमार झा, द्रमुक के कनिमोझी करुणानिधि, राकांपा (सपा) की सुप्रिया सुले और शिवसेना के श्रीकांत एकनाथ शिंदे इनका नेतृत्व करेंगे।

ये सांसद क्या करेंगे? ये विदेशी सरकारों, सांसदों, और मीडिया को पहलगाम हमले की सच्चाई बताएंगे। वो सबूत पेश करेंगे कि कैसे पाकिस्तान की जमीन से आतंकी संगठन जैसे लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद भारत के खिलाफ साजिश रचते हैं। साथ ही, ऑपरेशन सिंदूर को एक जिम्मेदार और लक्षित कार्रवाई के तौर पर पेश करेंगे। भारत का मकसद है कि दुनिया को पता चले कि हम आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति पर चल रहे हैं।

इसके पीछे की रणनीति बड़ी साफ है:

  1. पाकिस्तान को अलग-थलग करना: भारत चाहता है कि वैश्विक समुदाय पाकिस्तान को आतंकवाद का समर्थक माने। पहले भी भारत ने 2019 के पुलवामा हमले के बाद ऐसा किया था, जब जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को यूएन ने आतंकी घोषित किया था।

  2. कश्मीर को द्विपक्षीय रखना: पाकिस्तान और कुछ देश, जैसे अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प, कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय मसला बनाने की कोशिश कर रहे हैं। भारत इसे सख्ती से खारिज करता है।

  3. राष्ट्रीय एकता का प्रदर्शन: सभी दलों के सांसदों को शामिल करके भारत दिखाना चाहता है कि आतंकवाद के खिलाफ पूरा देश एकजुट है। ये एक शक्तिशाली संदेश है, खासकर तब जब शशि थरूर जैसे विपक्षी नेता सरकार के साथ खड़े हैं।

ऑपरेशन सिंदूर की भूमिका

ऑपरेशन सिंदूर इस कूटनीतिक पहल का केंद्र है। भारत ने इसे एक सर्जिकल स्ट्राइक की तरह पेश किया, जो सिर्फ आतंकी ठिकानों तक सीमित थी। विदेश सचिव विक्रम मिश्रा ने 8 मई को प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “हमने सिर्फ पहलगाम हमले का जवाब दिया। पाकिस्तान ने इस हमले को भड़काया, और अब उसे डी-एस्केलेशन का रास्ता चुनना होगा।”

इस ऑपरेशन में भारत ने PoK में 5 और पाकिस्तान के पंजाब में 4 ठिकानों को निशाना बनाया। भारतीय सेना ने दावा किया कि इन ठिकानों पर लश्कर और जैश के आतंकी ट्रेनिंग ले रहे थे। हालांकि, पाकिस्तान ने इसे “नागरिकों पर हमला” बताया, जिसमें 26 लोग मारे गए। भारत ने इन दावों को खारिज करते हुए कहा कि उसके पास खुफिया जानकारी है जो आतंकी गतिविधियों की पुष्टि करती है।

वैश्विक धारणा को बदलने की कोशिश

भारत का ये कदम सिर्फ पाकिस्तान को जवाब देने तक सीमित नहीं है। ये वैश्विक स्तर पर भारत की छवि को मजबूत करने की रणनीति है। भारत चाहता है कि दुनिया उसे एक जिम्मेदार और मजबूत राष्ट्र के तौर पर देखे, जो अपनी सुरक्षा के लिए निर्णायक कदम उठा सकता है।

  • पिछले अनुभव: 1994 में, तत्कालीन पीएम नरसिम्हा राव ने अटल बिहारी वाजपेयी और फारूक अब्दुल्ला को जेनेवा में यूएनएचआरसी में भेजा था, जहां पाकिस्तान की कश्मीर पर मानवाधिकार उल्लंघन की शिकायत को खारिज कर दिया गया था।

  • वर्तमान संदर्भ: आज, भारत के पास ज्यादा मजबूत कूटनीतिक स्थिति है। उसने हाल ही में 5G रोलआउट में विश्व रिकॉर्ड बनाया और G20 जैसे मंचों पर अपनी ताकत दिखाई। ये सांसद यात्राएं भारत की इस छवि को और मजबूत करेंगी।

चुनौतियां और आलोचनाएं

हर बड़े कदम की तरह, इस पहल की भी चुनौतियां हैं। कुछ विपक्षी नेता, जैसे कांग्रेस के जयराम रमेश, ने सरकार पर सवाल उठाए कि पीएम मोदी ने पहलगाम हमले और ऑपरेशन सिंदूर पर ऑल-पार्टी मीटिंग या संसद का विशेष सत्र क्यों नहीं बुलाया। इसके अलावा, चीन जैसे देश, जो पाकिस्तान के करीबी सहयोगी हैं, भारत के इस कदम का विरोध कर सकते हैं।

पाकिस्तान भी अपनी तरफ से प्रचार कर रहा है। उसने यूएन से स्वतंत्र जांच की मांग की है और दावा किया है कि भारत ने इंडस वाटर ट्रीटी को निलंबित कर दिया, जो उसके लिए बड़ा झटका है। भारत को इन जवाबी दावों को बेअसर करना होगा।

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भारत की नई ताकत

दोस्तों, भारत का ये कूटनीतिक हमला सिर्फ एक जवाबी कार्रवाई नहीं है—ये एक साफ संदेश है कि भारत अब अपनी बात को दुनिया के सामने और मजबूती से रखेगा। ऑपरेशन सिंदूर और सांसदों की वैश्विक यात्राएं दिखाती हैं कि भारत आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में न सिर्फ सैन्य ताकत, बल्कि कूटनीतिक चतुराई का भी इस्तेमाल कर रहा है।

जैसा कि संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा, “जब बात देश की आती है, तो भारत एकजुट होता है।” ये एकजुटता अब दुनिया देखेगी। क्या ये कदम पाकिस्तान को अलग-थलग कर पाएगा? क्या भारत अपनी वैश्विक छवि को और मजबूत करेगा? ये तो वक्त बताएगा, लेकिन एक बात पक्की है—भारत अब चुप नहीं बैठेगा

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