भारत के खिलाफ लगातार बढ़ रहे खालिस्तानी आंदोलन ने बीते कुछ वर्षों में गंभीर चुनौती पेश की है। खालिस्तान समर्थक अलगाववादी ताकतें भारत की संप्रभुता को नुकसान पहुंचाने की मंशा रखते हैं। खासकर कनाडा में खालिस्तानी गतिविधियों के बढ़ते प्रसार ने इस चुनौती को और जटिल बना दिया है। हाल ही में कनाडा में हुए एक हिंदू मंदिर पर हमले ने इस मामले को और गंभीर बना दिया है, जिस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कनाडा से ‘रूल ऑफ लॉ‘ को पालन करने की अपील की।
क्या है खालिस्तान मूवमेंट?
खालिस्तान मूवमेंट एक अलगाववादी आंदोलन है जो पंजाब राज्य में सिखों के लिए एक स्वतंत्र राष्ट्र स्थापित करने की मांग करता है। इस आंदोलन की शुरुआत 20वीं सदी में हुई थी और इसका उद्देश्य सिख धर्म और संस्कृति को सुरक्षित करना था। खालिस्तान का अर्थ है “सिखों का पवित्र स्थान” और आंदोलन का उद्देश्य था कि भारत के अंदर एक अलग सिख राष्ट्र बने।
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खालिस्तान मूवमेंट की शुरुआत कैसे हुई?
खालिस्तान मूवमेंट का उदय 1947 में भारत की स्वतंत्रता और विभाजन के बाद हुआ। पंजाब के सिख समुदाय ने स्वतंत्रता संग्राम में एक अहम भूमिका निभाई थी, लेकिन विभाजन के दौरान उन्हें हिंसा और विस्थापन का सामना करना पड़ा। इससे सिखों में असंतोष और असुरक्षा की भावना बढ़ी। 1970 और 1980 के दशक में यह असंतोष और भी बढ़ गया, जब कुछ सिख नेताओं ने सिखों के लिए स्वायत्तता की मांग की। जिसमें कुछ सिख अलगाववादी संगठनों ने पंजाब को भारत से अलग कर एक स्वतंत्र सिख राष्ट्र की मांग की। हालांकि, भारत सरकार ने इस आंदोलन को कुचल दिया, लेकिन विदेशों में बसे सिख समुदायों में इसके समर्थक अभी भी सक्रिय हैं।
कौन जिम्मेदार था खालिस्तानी आतंकवाद के लिए ?
इस आंदोलन ने 1980 के दशक में आतंकवाद का रूप ले लिया और जार्जर मियां में संतोख सिंह बिंद्रा के नेतृत्व में कई हिंसक घटनाएं घटी। इसमें भिंडरावाले, एक सिख धार्मिक नेता, मुख्य भूमिका में थे। भिंडरावाले ने सिख समुदाय के असंतोष का लाभ उठाते हुए, एक हिंसक आंदोलन का नेतृत्व किया।
भिंडरावाले की पूजा क्यों होती है?
भिंडरावाले का सिख समुदाय के बीच धार्मिक और भावनात्मक महत्व है। उन्हें पंजाब में सिखों के अधिकारों और संस्कृति की रक्षा के प्रतीक के रूप में देखा गया। हालांकि, भिंडरावाले के हिंसक तरीकों ने उनके प्रभाव को विवादास्पद बना दिया। इसके बावजूद, कई सिख लोग उन्हें शहीद मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं।
इंदिरा गांधी की भूमिका
इंदिरा गांधी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने खालिस्तान आंदोलन को कुचलने के लिए ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया। 1984 में, अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में छिपे खालिस्तानी आतंकियों को बाहर निकालने के लिए इस सैन्य अभियान का आयोजन हुआ। इस अभियान में भिंडरावाले और उनके कई समर्थकों की मौत हुई। इस कार्रवाई से सिख समुदाय में गुस्सा भड़क उठा और इसके परिणामस्वरूप, इंदिरा गांधी की हत्या भी हुई।
अमेरिका, ब्रिटेन, और कनाडा में खालिस्तानी क्यों सुरक्षित?
अमेरिका, ब्रिटेन, और कनाडा जैसे देशों में खालिस्तान मूवमेंट के समर्थक बड़ी संख्या में बसे हुए हैं। ये देश बहुलतावादी समाज और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए जाने जाते हैं, जहां ऐसे आंदोलन खुलकर अपने विचार व्यक्त कर सकते हैं। हाल के वर्षों में कनाडा में खालिस्तान आंदोलन को पुनर्जीवन मिला है। कनाडा में खालिस्तान समर्थकों की बढ़ती संख्या भारतीय सरकार के लिए चिंता का विषय बन गई है। कनाडा के कुछ प्रभावशाली सिख संगठन, राजनीतिक और धार्मिक आधार पर खालिस्तान समर्थक अभियानों को बढ़ावा देते हैं। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की सरकार ने कई मौकों पर इन समूहों की गतिविधियों पर सख्त कार्रवाई नहीं की, जिससे भारत में आलोचना का सामना करना पड़ा।
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कनाडा में हाल ही में हुई घटनाएं
पिछले कुछ वर्षों में कनाडा में कई हिंदू मंदिरों और भारतीय संस्थाओं पर हमले किए गए हैं। 2024 में हुए हाल के एक हमले में हिंदू मंदिर को नुकसान पहुंचाया गया, जिससे दोनों देशों के रिश्तों में और खटास आ गई। कनाडा में बसे भारतीय समुदाय में इन घटनाओं को लेकर भय और असुरक्षा का माहौल है। इन हमलों के बाद भारत सरकार ने कड़े शब्दों में निंदा की और कनाडा से इस मुद्दे पर कार्रवाई की मांग की।
कनाडा का रुख और भारत के साथ कूटनीतिक संबंध
कनाडा सरकार ने भारतीय अपीलों के बावजूद खालिस्तान समर्थकों पर नियंत्रण की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए हैं। प्रधानमंत्री ट्रूडो की ओर से कहा गया है कि उनका देश ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ का सम्मान करता है। यह रुख भारत और कनाडा के कूटनीतिक संबंधों में तनाव का कारण बना है। कनाडा में हिंदू मंदिर पर हुए हमले के बाद प्रधानमंत्री मोदी का कनाडा को ‘रूल ऑफ लॉ’ की याद दिलाना, इस बात का संकेत है कि भारत अब सख्त रुख अपनाने के लिए तैयार है। क्योंकि कनाडा, विशेष रूप से, खालिस्तानी गतिविधियों का हब बन गया है।
विशेषज्ञों की राय और सुरक्षा विश्लेषण
खालिस्तान समर्थक गतिविधियों पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों के अनुसार, कनाडा सरकार द्वारा की गई ढील इस समस्या को और बढ़ावा दे रही है। विश्लेषकों का मानना है कि खालिस्तान समर्थक संगठनों के पास वित्तीय और सामाजिक समर्थन की कोई कमी नहीं है, और इस वजह से उनके अभियानों को रोकना मुश्किल हो रहा है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि इस मुद्दे पर भारत और कनाडा को एक समझौता करना होगा, अन्यथा दोनों देशों के संबंध और बिगड़ सकते हैं।
कनाडा में खालिस्तान समर्थन पर कनाडाई सिख समुदाय की राय
कनाडा में बसे अधिकांश सिख समुदाय के लोग खालिस्तान आंदोलन का समर्थन नहीं करते हैं और उन्हें इससे कोई लेना-देना नहीं है। उनका मानना है कि इस आंदोलन के कारण उनके और अन्य समुदायों के बीच टकराव बढ़ रहा है। कनाडा में भारतीय समुदाय का यह विचार है कि इस आंदोलन को सीमित करना आवश्यक है, ताकि सभी समुदायों में भाईचारे की भावना बनी रहे। जबकिं कनाडा, अमेरिका, और ब्रिटेन जैसे देशों में बसे कुछ सिख अलगाववादी इन दिनों खालिस्तान की मांग को फिर से उठाने में जुटे हैं।
मोदी का ट्वीट: ‘रूल ऑफ लॉ’ की अपील
हिंदू मंदिर पर हुए हमले के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट कर कनाडा को ‘रूल ऑफ लॉ’ का पालन करने का आग्रह किया। यह पहला मौका है जब भारतीय प्रधानमंत्री ने कनाडा सरकार से इस तरह खुलकर अपील की है। उनका यह ट्वीट भारतीय जनता में कनाडा के प्रति निराशा को दर्शाता है। मोदी के ट्वीट ने कनाडा सरकार पर एक प्रकार का दबाव भी डाला है कि वह खालिस्तान समर्थक गतिविधियों पर अंकुश लगाए।
I strongly condemn the deliberate attack on a Hindu temple in Canada. Equally appalling are the cowardly attempts to intimidate our diplomats. Such acts of violence will never weaken India’s resolve. We expect the Canadian government to ensure justice and uphold the rule of law.
— Narendra Modi (@narendramodi) November 4, 2024
खालिस्तान मूवमेंट के खिलाफ भारतीय सरकार की रणनीति
भारत सरकार ने विदेशों में खालिस्तान समर्थक गतिविधियों पर नजर रखने के लिए विशेष एजेंसियों का गठन किया है। विदेश मंत्रालय, खुफिया एजेंसियों के साथ मिलकर उन सभी संगठनों पर नजर बनाए हुए है जो खालिस्तान समर्थक हैं। भारत कनाडा के साथ कूटनीतिक स्तर पर इस मुद्दे को सुलझाने के प्रयास कर रहा है, लेकिन अब तक कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया है।
भारत-कनाडा संबंधों पर खालिस्तान मूवमेंट का प्रभाव
कनाडा में खालिस्तान समर्थक गतिविधियों ने भारत-कनाडा संबंधों में दरार पैदा कर दी है। प्रधानमंत्री मोदी के ‘रूल ऑफ लॉ’ वाले ट्वीट ने कनाडा सरकार पर दबाव बढ़ा दिया है कि वह खालिस्तान समर्थक गतिविधियों पर सख्त रुख अपनाए। अगर कनाडा सरकार इस पर ध्यान नहीं देती है, तो दोनों देशों के संबंधों में और भी कटुता आ सकती है। भारत और कनाडा को मिलकर खालिस्तान समर्थकों के खिलाफ एक कड़ा रुख अपनाना होगा, ताकि दोनों देशों में रहने वाले भारतीय समुदाय की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
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