प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को राजस्थान के देशनोक, बिकानेर में एक रैली में ऐसा धमाका किया कि सियासी गलियारों में हलचल मच गई। ऑपरेशन सिंदूर के तहत आतंकवाद के खिलाफ “करारा जवाब” देने की उनकी बात ने न सिर्फ देश का सीना चौड़ा किया, बल्कि बीजेपी को आगामी राज्य चुनावों में एक नया हथियार भी दे दिया। मोदी का नारा—“न बात, न व्यापार, सिर्फ PoK”—ने साफ कर दिया कि बीजेपी राष्ट्रीय सुरक्षा को अपनी सियासी रणनीति का केंद्र बनाने जा रही है। लेकिन क्या ये जोश भरा राष्ट्रवाद वोटरों को लुभा पाएगा? और विपक्ष, खासकर कांग्रेस, इसकी काट कैसे निकालेगा? आइए, इसकी पड़ताल करते हैं।
ऑपरेशन सिंदूर: बीजेपी का मास्टरस्ट्रोक?
मोदी ने बिकानेर में कहा, “जो लोग भारत की धरती पर आतंक का खेल खेलते हैं, उन्हें करारा जवाब मिलेगा—हमारे समय पर, हमारी शर्तों पर।” ऑपरेशन सिंदूर, जिसमें पहलगाम हमले के बाद 22 मिनट में नौ आतंकी ठिकानों को नेस्तनाबूद कर दिया गया, को मोदी ने भारत की ताकत का प्रतीक बताया। “सिंदूर का मतलब सिर्फ श्रृंगार नहीं, ये हमारी मातृभूमि की रक्षा का प्रतीक है,” उनकी ये बात सुनकर भीड़ में जोश भर गया।
बीजेपी इसे सियासी मंच पर भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही। पार्टी के नेता, कार्यकर्ता और सोशल मीडिया विंग इसे “नए भारत” की कहानी के तौर पर पेश कर रहे हैं। #OperationSindoor और #ModiKaJawaab जैसे हैशटैग ट्विटर पर ट्रेंड कर रहे हैं। बीजेपी की रणनीति साफ है: राष्ट्रवाद का जोश, खासकर ग्रामीण और छोटे शहरों के वोटरों को, अपनी तरफ खींचना। आगामी राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के चुनावों में बीजेपी इसे बड़ा मुद्दा बनाने की फिराक में है।
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “मोदी जी का ये बयान गेम-चेंजर है। लोग चाहते हैं कि उनका लीडर मजबूत हो, जो दुश्मन को सबक सिखाए। ये संदेश सीधे दिल तक जाता है।” बीजेपी की रैलियों में अब ऑपरेशन सिंदूर की तस्वीरें, वीडियो और सैनिकों की वीरता की कहानियां छाई हुई हैं। लेकिन सवाल ये है कि क्या ये रणनीति हर बार की तरह कामयाब होगी?
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विपक्ष का जवाब: कांग्रेस की दुविधा
कांग्रेस इस मुद्दे पर फूंक-फूंककर कदम रख रही है। राहुल गांधी ने ऑपरेशन सिंदूर की तारीफ तो की, लेकिन सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, “राष्ट्रीय सुरक्षा को सियासी मंच पर नहीं लाना चाहिए। ऑपरेशन की जानकारी पहले पाकिस्तान को देना गलत था।” उनकी इस बात को बीजेपी ने तुरंत पलटवार का मौका बनाया, कहकर कि कांग्रेस “राष्ट्रविरोधी ताकतों” का साथ दे रही है।
कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि वो बीजेपी के राष्ट्रवादी नैरेटिव का जवाब कैसे दे। अगर वो ऑपरेशन की आलोचना करती है, तो उसे “देशद्रोही” ठहराने का खतरा है। और अगर समर्थन करती है, तो बीजेपी को ही फायदा होगा। एक कांग्रेस कार्यकर्ता ने कहा, “हमारे पास कहने को कुछ है ही नहीं। लोग जोश में हैं, और हमें डर है कि कहीं हमारा बयान उल्टा न पड़ जाए।”
कांग्रेस ने अब दूसरा रास्ता चुना है—आर्थिक मुद्दों और बेरोजगारी पर फोकस करना। लेकिन क्या ये रणनीति ऑपरेशन सिंदूर के जोश के सामने टिक पाएगी? जानकारों का मानना है कि विपक्ष को कोई नया नैरेटिव चाहिए, जो राष्ट्रवाद और विकास को जोड़े, वरना बीजेपी का पलड़ा भारी रहेगा।
वोटरों का मूड: जोश या डर?
वोटरों की प्रतिक्रिया इस सियासी ड्रामे का सबसे अहम हिस्सा है। ग्रामीण इलाकों में मोदी का “करारा जवाब” वाला बयान खूब पसंद किया जा रहा है। राजस्थान के एक किसान, रामलाल, ने कहा, “मोदी जी ने ठीक किया। आतंकियों को छोड़ना नहीं चाहिए। हम चाहते हैं कि देश सुरक्षित रहे।” छोटे शहरों और कस्बों में भी यही जोश दिखता है, जहां लोग बीजेपी की “मजबूत भारत” वाली छवि से प्रभावित हैं।
लेकिन शहरी और युवा वोटरों में थोड़ा अलग माहौल है। दिल्ली की एक कॉलेज स्टूडेंट, प्रिया शर्मा, ने कहा, “राष्ट्रवाद ठीक है, लेकिन हर बार यही मुद्दा क्यों? हमें नौकरी, शिक्षा और अर्थव्यवस्था पर भी बात चाहिए।” कुछ लोग ये भी डर जता रहे हैं कि बार-बार पाकिस्तान के साथ तनाव बढ़ाने से कहीं युद्ध जैसी स्थिति न बन जाए। सोशल मीडिया पर #NoWar ट्रेंड कर रहा है, जो इस चिंता को दिखाता है।
एक हालिया सर्वे के मुताबिक, 65% ग्रामीण वोटर बीजेपी के इस नैरेटिव से सहमत हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में ये आंकड़ा 45% तक गिर जाता है। इसका मतलब है कि बीजेपी को शहरी वोटरों को लुभाने के लिए कुछ और करना होगा।
सियासत और राष्ट्रीय सुरक्षा: जोखिम क्या?
राष्ट्रीय सुरक्षा को सियासी हथियार बनाना बीजेपी के लिए नया नहीं है। 2019 में बालाकोट स्ट्राइक के बाद भी यही हुआ था, और बीजेपी को भारी जीत मिली। लेकिन इस बार जोखिम भी कम नहीं। पहला, बार-बार राष्ट्रवाद का कार्ड खेलने से वोटर बोर हो सकते हैं। दूसरा, अगर भारत-पाक तनाव बढ़ा, तो आर्थिक और कूटनीतिक नुकसान हो सकता है।
विदेशी मामलों के जानकार प्रो. रमेश ठाकुर कहते हैं, “मोदी का ये बयान घरेलू सियासत के लिए तो ठीक है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत को सावधान रहना होगा। अमेरिका, चीन और रूस जैसे देश इस पर नजर रखे हैं।” खासकर, अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के दावे कि वो भारत-पाक के बीच मध्यस्थता कर रहे हैं, ने पहले ही सवाल खड़े किए हैं। मोदी का इस पर चुप रहना भी सियासी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।
इसके अलावा, विपक्ष का आरोप है कि बीजेपी ऑपरेशन सिंदूर को जरूरत से ज्यादा बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रही है। अगर भविष्य में कोई आतंकी हमला होता है, तो सरकार की किरकिरी हो सकती है।
आगे की राह
बीजेपी के लिए ऑपरेशन सिंदूर एक सुनहरा मौका है, लेकिन इसे संभालकर चलना होगा। पार्टी को राष्ट्रवाद के साथ-साथ आर्थिक और सामाजिक मुद्दों पर भी ध्यान देना होगा। विपक्ष के लिए ये मौका है कि वो एक वैकल्पिक नैरेटिव बनाए, जो लोगों की रोजमर्रा की समस्याओं को जोड़े।
वोटरों का मूड अभी जोश में है, लेकिन ये जोश कब तक रहेगा, ये देखना होगा। क्या मोदी का “करारा जवाब” बीजेपी को फिर से सत्ता का ताज दिलाएगा, या विपक्ष इस बार बाजी मार लेगा? ये सवाल अगले कुछ महीनों में साफ हो जाएगा।
ऑपरेशन सिंदूर बीजेपी के लिए एक सियासी तुरुप का इक्का है, लेकिन इसका असर इस बात पर निर्भर करेगा कि पार्टी इसे कैसे भुनाती है। राष्ट्रवाद का जोश वोटरों को लुभा सकता है, लेकिन शहरी और युवा वोटरों की चिंताओं को नजरअंदाज करना भारी पड़ सकता है। दूसरी तरफ, कांग्रेस को इस नैरेटिव का जवाब देने के लिए कुछ नया सोचना होगा। सियासत और सुरक्षा का ये खेल अभी और रोमांचक होने वाला है।