पीएम मोदी के विदेश दौरों से भारत को क्या मिला ?

पिछले 11 साल में पीएम मोदी ने 73 देशों में 88 विदेश दौरे किए, और कुछ लोग कहते हैं कि 157 यात्राओं पर ₹8,400 करोड़ खर्च हो गए। विपक्ष इसे फिजूलखर्ची बताता है, लेकिन समर्थक X पर दावा करते हैं कि इन दौरों ने भारत को ग्लोबल लीडर बनाया। आखिर इन विदेश यात्राओं से भारत को क्या हासिल हुआ? मई 2025 में यूके-भारत फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) से लेकर यूएई, जापान और अमेरिका के साथ डील्स तक, इन दौरों ने भारत की अर्थव्यवस्था, रक्षा, और ग्लोबल रुतबे को कैसे बूस्ट किया, आइए जानते हैं।

यूके-भारत FTA: अर्थव्यवस्था को बिलियन डॉलर का फायदा

मई 2025 में पीएम मोदी और यूके के पीएम कीर स्टार्मर ने एक ऐतिहासिक फ्री ट्रेड एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए। इस डील से भारत के 99% निर्यात पर यूके में जीरो ड्यूटी लगेगी, जिससे टेक्सटाइल, समुद्री उत्पाद, चमड़ा, और ज्वैलरी जैसे सेक्टर्स को जबरदस्त फायदा होगा। यूके का अनुमान है कि ये डील 2040 तक द्विपक्षीय व्यापार को 25.6 बिलियन पाउंड बढ़ाएगी, और भारत की जीडीपी को भी बूस्ट देगी।

ये डील सिर्फ व्यापार तक सीमित नहीं। भारत की मैन्युफैक्चरिंग, जो 2031 तक जीडीपी का 21% हिस्सा बनने वाली है, को यूके के साथ टेक्नोलॉजी और इनवेस्टमेंट से नई रफ्तार मिलेगी। इससे नौकरियां बढ़ेंगी, खासकर छोटे शहरों में, जहां मेक इन इंडिया जैसी योजनाएं पहले ही लाखों जॉब्स क्रिएट कर रही हैं। 2014 से 2025 तक भारत ने इन दौरों की बदौलत $193 बिलियन का FDI हासिल किया, जो पहले दशक (2004-14) से 119% ज्यादा है।

यूएई, जापान, और यूएस के साथ डील्स: टेक्नोलॉजी और एनर्जी का नया दौर

मोदी के यूएई, जापान, और अमेरिका के दौरे सिर्फ डिप्लोमेसी नहीं, बल्कि भारत की ग्रोथ का इंजन बने। यूएई के साथ 2024 में साइन किए गए 10 MoUs ने इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप कॉरिडोर (IMEC) को मजबूत किया। ये कॉरिडोर भारत को मध्य पूर्व और यूरोप से जोड़ेगा, जिससे व्यापार और एनर्जी सप्लाई चेन में भारत की पकड़ मजबूत होगी। यूएई ने भारत में $75 बिलियन के निवेश का वादा किया, जिसमें अबू धाबी इनवेस्टमेंट अथॉरिटी ने GIFT सिटी के जरिए $5 बिलियन डाले।

जापान के साथ 2014 में शुरू हुई न्यूक्लियर और बुलेट ट्रेन डील्स ने भारत को टेक्नोलॉजी हब बनाने की राह खोली। 2025 में जापान के साथ सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन डील भारत को चिप मैन्युफैक्चरिंग में ग्लोबल प्लेयर बना रही है। उधर, अमेरिका के साथ GE-HAL जेट इंजन टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और INDUS-X इनिशिएटिव ने भारत की डिफेंस सेल्फ-रिलायंस को बूस्ट दिया। ये डील्स न सिर्फ रक्षा क्षेत्र को मजबूत कर रही हैं, बल्कि लाखों हाई-स्किल जॉब्स भी क्रिएट कर रही हैं।

ग्लोबल मंच पर भारत की धमक: Quad, G20, और ग्लोबल साउथ

मोदी के 88 दौरों ने भारत को Quad, G20, और ग्लोबल साउथ में लीडर बनाया। 2023 में भारत की G20 प्रेसीडेंसी ने दुनिया को दिखाया कि भारत ग्लोबल साउथ की आवाज है। मोदी ने G20 में रेमिटेंस कॉस्ट घटाने की बात उठाई, जिससे सऊदी अरब ने इसे 10% से 3.5% तक लाया। ये भारत के लिए बड़ी जीत थी, क्योंकि भारत को हर साल $71 बिलियन रेमिटेंस मिलता है।

IMEC और ईरान के साथ चाबहार पोर्ट डील ने भारत को सेंट्रल एशिया और यूरोप के साथ कनेक्टिविटी का बड़ा खिलाड़ी बनाया। चाबहार पोर्ट अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक भारत की पहुंच बढ़ाता है, जिससे वेस्टर्न और चीनी प्रभाव को काउंटर करने में मदद मिलती है। मोदी ने G20 और क्वाड में भारत को एक बैलेंसिंग पावर के तौर पर पेश किया, जो न वेस्ट का पिट्ठू है, न चीन का।

डायस्पोरा का दम: सॉफ्ट पावर और इनवेस्टमेंट

मोदी ने यूएस, यूएई, और सऊदी अरब जैसे देशों में भारतीय डायस्पोरा को जोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी। 2016 में सऊदी अरब दौरे पर डायस्पोरा वेलफेयर प्रोग्राम्स शुरू किए गए, जिससे वहां के 30 लाख भारतीयों को सपोर्ट मिला। यूएस में 2024 में न्यूयॉर्क डायस्पोरा इवेंट और यूएई में 2015 में शुरू हुआ हिंदू मंदिर प्रोजेक्ट भारत की सांस्कृतिक ताकत को दिखाता है।

ये डायस्पोरा न सिर्फ भारत की सॉफ्ट पावर बढ़ाता है, बल्कि इनवेस्टमेंट भी लाता है। यूएई और सऊदी के भारतीय मूल के बिजनेसमैन GIFT सिटी और मेक इन इंडिया में बड़ा निवेश कर रहे हैं।

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₹8,400 करोड़ का खर्च: फायदा या नुकसान?

विपक्ष का कहना है कि मोदी के 157 दौरों पर ₹8,400 करोड़ खर्च हुए, जो टैक्सपेयर्स के पैसे की बर्बादी है। लेकिन समर्थक X पर तर्क देते हैं कि ये खर्च भारत को ग्लोबल स्टेज पर लाने का निवेश है। 18+ देशों के साथ रुपये में व्यापार की डील्स, रूस और यूएई के साथ स्ट्रैटेजिक ऑयल डील्स, और $193 बिलियन का FDI इस बात का सबूत हैं।

रूस के साथ 2014 में हुए $30 बिलियन ट्रेड टारगेट और यूएई के साथ एनर्जी डील्स ने भारत की एनर्जी सिक्योरिटी को मजबूत किया। इन दौरों ने भारत को सस्ता तेल और गैस दिलाया, जिससे आम आदमी को फायदा हुआ। हां, खर्च बड़ा है, लेकिन लॉन्ग-टर्म में ये भारत को तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने की राह पर ले जा रहा है। IMF और वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट्स कहती हैं कि 2027 तक भारत तीसरी सबसे बड़ी इकॉनमी होगा।

लॉन्ग-टर्म गेन की बुनियाद

मोदी के विदेश दौरे भारत के लिए गेम-चेंजर साबित हुए। यूके-भारत FTA, IMEC, और चाबहार जैसे प्रोजेक्ट्स ने भारत को ग्लोबल ट्रेड और जियोपॉलिटिक्स में अहम खिलाड़ी बनाया। डिफेंस और टेक्नोलॉजी में डील्स, जैसे GE-HAL और जापान के सेमीकंडक्टर प्रोजेक्ट्स, भारत को आत्मनिर्भर बना रहे हैं। डायस्पोरा के जरिए सॉफ्ट पावर और इनवेस्टमेंट बढ़ा, और रुपये में ट्रेड ने भारत की इकॉनमी को मजबूत किया।

हां, ₹8,400 करोड़ का खर्च बड़ा है, और विपक्ष का सवाल जायज है। लेकिन $1 ट्रिलियन से ज्यादा FDI, लाखों नौकरियां, और ग्लोबल मंच पर भारत की बुलंद आवाज को देखें, तो ये निवेश सही दिशा में लगता है।

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