Supreme Court ने हाल ही में ‘बुलडोजर एक्शन’ के बढ़ते चलन पर कड़ा रुख अपनाया है, यह कहते हुए कि किसी व्यक्ति के अपराधी होने का केवल आरोप ही उसके घर को गिराने का आधार नहीं हो सकता। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब कई राज्यों में सार्वजनिक स्थानों पर अवैध निर्माण या अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई के नाम पर मकानों और दुकानों को बुलडोजर से तोड़ने की घटनाएं बढ़ रही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि ऐसे मामलों में सरकारी अधिकारियों को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। न्यायाधीशों की पीठ, जिसमें जस्टिस बीआर गवई और केवी विश्वनाथन शामिल थे, ने कहा कि कानून का शासन एक ऐसा ढांचा प्रदान करता है जिसमें व्यक्ति यह विश्वास रख सकते हैं कि उनका संपत्ति बिना किसी उचित प्रक्रिया के जब्त नहीं की जाएगी।
Also Read : ‘ एक है तो सेफ है ‘ – प्रधानमंत्री मोदी का नया नारा क्यों है महत्वपूर्ण? – 6 मुख्य बातें
बुलडोजर न्याय का मुद्दा क्यों उठा?
हाल के वर्षों में कई राज्यों में अपराधियों या अवैध निर्माणों के खिलाफ बुलडोजर का प्रयोग बढ़ा है। सरकारें इसे कानून व्यवस्था बनाए रखने और सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा के लिए एक जरूरी कदम बताती हैं, लेकिन इस प्रक्रिया में कई बार यह देखा गया है कि बिना पर्याप्त नोटिस और कानूनी प्रक्रिया के लोगों की संपत्तियों को नष्ट कर दिया जाता है। यह प्रक्रिया अक्सर उन लोगों के मानवाधिकारों का उल्लंघन करती है जो कि कानून द्वारा सुरक्षित हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को ‘बुलडोजर एक्शन’ का उपयोग अपराधियों को दंडित करने के बजाय केवल अवैध निर्माणों के खिलाफ ही करना चाहिए। केवल आरोप के आधार पर किसी के घर को गिराना न्यायपालिका के सिद्धांतों के खिलाफ है और इसे अनुचित करार दिया जाना चाहिए।
कानून का शासन और सुप्रीम कोर्ट का रुख
सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि न्याय का पालन केवल अदालत ही कर सकती है, न कि कार्यपालिका। किसी भी आरोप के आधार पर संपत्ति को नष्ट करना कानून की आत्मा के खिलाफ है और यह न्याय के सिद्धांतों पर प्रहार करता है। पीठ ने यह भी कहा कि केवल आरोप के आधार पर कार्यपालिका किसी व्यक्ति को अपराधी घोषित नहीं कर सकती। ऐसा करना व्यक्ति के अधिकारों के खिलाफ है और इससे सार्वजनिक अधिकारियों की जवाबदेही पर सवाल उठता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि किसी मकान में अवैध निर्माण हो तो भी उसे गिराने से पहले पर्याप्त समय और नोटिस देना अनिवार्य है, ताकि प्रभावित लोग अपने मामलों को संभाल सकें। इसके अलावा, महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों को रातोंरात सड़कों पर खींचकर ले जाने के दृश्य को न्यायपालिका ने निंदनीय माना।
सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश: बुलडोजर कार्रवाई में पारदर्शिता और प्रक्रिया की मांग
सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह की कार्रवाई में उचित प्रक्रिया का पालन करने के लिए कई दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इन दिशा-निर्देशों के अनुसार:
1. नोटिस की अनिवार्यता: संपत्ति को गिराने से पहले उचित नोटिस देना अनिवार्य है। इससे प्रभावित व्यक्ति को यह मौका मिलता है कि वह निर्णय को चुनौती दे सके या फिर भवन को खाली कर सके।
2. समय सीमा: सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, नोटिस जारी होने के बाद संपत्ति के मालिक को कम से कम 15 दिनों का समय दिया जाना चाहिए ताकि वे उचित कदम उठा सकें।
3. नोटिस का प्रमाण: नोटिस प्राप्त होने की पुष्टि जिला कलेक्टर या मजिस्ट्रेट के कार्यालय को डिजिटल माध्यम से ईमेल द्वारा भेजी जानी चाहिए। इसके साथ ही एक ऑटो-जनरेटेड पुष्टि पत्र भी जारी किया जाना चाहिए।
4. व्यक्तिगत सुनवाई का अधिकार: संपत्ति के मालिकों को व्यक्तिगत सुनवाई का मौका दिया जाना चाहिए और इस बैठक के मिनट्स को रिकॉर्ड किया जाना चाहिए।
5. विस्तृत रिपोर्ट और दस्तावेजीकरण:संपत्ति की वास्तविक स्थिति की विस्तृत रिपोर्ट बनाई जानी चाहिए, और अगर संपत्ति को गिराने का कदम उठाया जाता है, तो इसकी प्रक्रिया को वीडियोग्राफ किया जाना चाहिए।
6. केवल अनधिकृत निर्माण पर कार्रवाई: संपत्ति का केवल वह हिस्सा गिराया जा सकता है, जो वास्तव में अवैध रूप से निर्मित है।
7. अधिकारियों की जवाबदेही: यदि निर्देशों का उल्लंघन पाया जाता है, तो जिम्मेदार अधिकारियों को निजी तौर पर संपत्ति की बहाली की लागत वहन करनी होगी।
Also Read : दीपोत्सव अयोध्या: 500 साल बाद रामलला के दर्शन और नया विश्व रिकॉर्ड
‘बुलडोजर न्याय’ पर विशेषज्ञों की राय और इसके संभावित प्रभाव
विशेषज्ञों का मानना है कि बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के संपत्ति को नष्ट करना सरकार की कार्यवाही की पारदर्शिता पर सवाल उठाता है। मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि यह लोगों के मूल अधिकारों का हनन है और इससे समाज में भय का माहौल बन सकता है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, हाल के वर्षों में अवैध निर्माणों के खिलाफ कार्रवाई में वृद्धि देखी गई है, जिसमें कई गरीब और पिछड़े वर्ग के लोगों की संपत्तियों को बिना पर्याप्त कानूनी प्रक्रिया के नष्ट कर दिया गया है।
वास्तविक उदाहरण: बुलडोजर न्याय के चलते उभरे विवाद
हाल ही में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में बुलडोजर एक्शन से संपत्तियों को गिराने के मामले सामने आए हैं। कई मामलों में यह देखा गया है कि अपराधी के परिवार के मकान को बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के गिरा दिया गया। इस तरह की कार्रवाई ने न्यायपालिका और मानवाधिकार संगठनों का ध्यान आकर्षित किया।
वास्तविक उदाहरणों में देखा गया है कि गरीब वर्ग, जो कानूनी सहायताएं प्राप्त करने में अक्षम होते हैं, उन पर अधिक प्रभाव पड़ता है। ऐसे मामलों में न्यायपालिका का दखल एक आवश्यक कदम है, जो कि संविधान के अनुच्छेदों और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करता है।
सुप्रीम कोर्ट का यह कदम सरकार और कार्यपालिका को यह संदेश देता है कि कानून का पालन एकमात्र मार्ग है जिससे न्याय की स्थापना की जा सकती है।सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है आरोप के आधार पर किसी व्यक्ति के साथ अन्याय नहीं किया जा सकता है और किसी भी सरकारी कार्रवाई को कानून की सीमाओं के भीतर ही किया जाना चाहिए।
इस दिशा-निर्देश के लागू होने से सरकारी कार्रवाई में पारदर्शिता आएगी और लोगों के अधिकारों की रक्षा होगी। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत मिलने वाले मौलिक अधिकारों की रक्षा के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
यूपी सरकार की प्रतिक्रिया
● सुशासन की पहली शर्त होती है क़ानून का राज। इस दृष्टि से माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आज दिया गया फ़ैसला स्वागत योग्य है।
● इस फ़ैसले से अपराधियों के मन में क़ानून का भय होगा।
● इस फ़ैसले से माफ़िया प्रवृति के तत्व यह संगठित पेशेवर अपराधियों पर लगाम कसने में आसानी होगी।
● क़ानून का राज सब पर लागू होता है।
● यद्यपि यह आदेश दिल्ली के संदर्भ में था, उत्तर प्रदेश सरकार इसमें पार्टी नहीं थी।
—————–
(केस जमीयतउलेमा-ए-हिन्द बनाम उत्तरी दिल्ली नगर निगम व अन्य से संबंधित था।