Turkey Drone Diplomacy with Pakistan: आजकल भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव की खबरें हर जगह छाई हुई हैं, और इस बार इसमें एक नया मोड़ आया है—टर्की। जी हाँ, टर्की, जो अपनी ड्रोन टेक्नोलॉजी और कश्मीर पर पाकिस्तान के समर्थन की वजह से भारत में सुर्खियों में है। टर्की के यिहा III कामिकाज़ ड्रोन्स, जिन्हें पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ इस्तेमाल किया, ने न सिर्फ सैन्य तनाव बढ़ाया है, बल्कि भारत में “बॉयकॉट टर्की” आंदोलन को भी हवा दी है। आइए, इस मसले को थोड़ा करीब से समझते हैं कि टर्की की ये ड्रोन डिप्लोमेसी क्या है, और इसका भारत-टर्की रिश्तों पर क्या असर पड़ रहा है।
टर्की और पाकिस्तान का गहरा याराना
पिछले कुछ सालों में टर्की और पाकिस्तान की दोस्ती गहरी होती जा रही है। टर्की न सिर्फ पाकिस्तान को हथियार और ड्रोन्स सप्लाई कर रहा है, बल्कि कश्मीर मसले पर भी खुलकर उसका साथ दे रहा है। मई 2025 में भारत की “ऑपरेशन सिंदूर” के बाद, जब भारत ने पाकिस्तान और PoK में आतंकी ठिकानों पर सटीक हमले किए, टर्की ने न सिर्फ पाकिस्तान का समर्थन किया, बल्कि 350 से ज्यादा यिहा III कामिकाज़ ड्रोन्स और सैन्य सलाहकार भी भेजे। इन ड्रोन्स का इस्तेमाल पाकिस्तान ने पंजाब, जम्मू-कश्मीर और राजस्थान में भारत के सैन्य और नागरिक ठिकानों पर हमले के लिए किया।
यिहा III ड्रोन कोई मामूली मशीन नहीं है। ये एक तरह का “लॉइटरिंग म्यूनिशन” है, जो हवा में घूम सकता है, टारगेट ढूंढ सकता है, और फिर खुद को उस पर उड़ा सकता है। इसे टर्की ने बनाया है, और ये सीरिया, यूक्रेन जैसे युद्धों में अपनी मारक क्षमता दिखा चुका है। लेकिन जब ये ड्रोन्स भारत के खिलाफ इस्तेमाल हुए, तो भारतीय वायु रक्षा ने इन्हें पलक झपकते ही नाकाम कर दिया। अमृतसर, नौशेरा और बाड़मेर में इनके मलबे बरामद हुए, जिसने टर्की की भूमिका को और उजागर किया।
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कश्मीर पर टर्की का रुख
टर्की के राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दोगन ने कश्मीर पर हमेशा पाकिस्तान का साथ दिया है। अप्रैल 2025 में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले, जिसमें 26 लोग मारे गए, के बाद भी टर्की ने भारत के साथ सहानुभूति दिखाने की बजाय पाकिस्तान के साथ खड़े होने का फैसला किया। एर्दोगन ने पाकिस्तानी पीएम शहबाज़ शरीफ से मुलाकात की और भारत के हमलों को “नागरिकों की शहादत” करार दिया। ये रुख भारत के लिए नया नहीं है। टर्की पहले भी संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर कश्मीर को लेकर पाकिस्तान का समर्थन करता रहा है, जिससे भारत और टर्की के रिश्ते पहले ही तनावपूर्ण थे।
“बॉयकॉट टर्की” आंदोलन की शुरुआत
टर्की की इन हरकतों ने भारत में गुस्से की लहर पैदा कर दी। सोशल मीडिया पर #BoycottTurkey ट्रेंड करने लगा, और लोग टर्की के खिलाफ आर्थिक और कूटनीतिक जवाब की मांग करने लगे। उदयपुर के मार्बल प्रोसेसर्स एसोसिएशन ने टर्की से मार्बल आयात पर पूरी तरह बैन लगाने का ऐलान किया, जो भारत के 70% मार्बल सप्लाई का हिस्सा है। पुणे के फल बाजारों में टर्की के सेब गायब हो गए, और व्यापारी अब हिमाचल, ईरान या न्यूज़ीलैंड के सेब बेच रहे हैं।
लोगों का गुस्सा सिर्फ सामान तक सीमित नहीं है। टर्की की एयरलाइंस और पर्यटन उद्योग भी निशाने पर हैं। भारत के लोग, जो हर साल टर्की में 4000 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च करते हैं, अब वहां की सैर करने से बच रहे हैं। पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने भारत-टर्की उड़ानों को अस्थायी रूप से बंद करने का सुझाव दिया। शिव सेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने भी लोगों से अपील की कि वे टर्की और अज़रबैजान जैसे देशों की यात्रा न करें, जो पाकिस्तान का साथ दे रहे हैं।
भारत-टर्की रिश्तों पर असर
भारत और टर्की के रिश्ते पहले से ही ठंडे थे, लेकिन इस घटना ने उन्हें और बिगाड़ दिया। टर्की की इंडिगो एयरलाइंस के साथ कोडशेयर साझेदारी, जिसके तहत दोनों कंपनियां यूरोप और अमेरिका के 30 से ज्यादा शहरों में उड़ानें संचालित करती हैं, अब सवालों के घेरे में है। राष्ट्रीय सुरक्षा विशेषज्ञ सुशांत सरीन जैसे लोग इसे “पाकिस्तान समर्थक” टर्की को पुरस्कृत करने जैसा मानते हैं।
भारत ने कूटनीतिक स्तर पर भी जवाब देना शुरू किया है। टर्की के सरकारी न्यूज़ चैनल TRT के X अकाउंट को भारत में ब्लॉक कर दिया गया। साथ ही, भारत ने टर्की को BRICS में शामिल होने से रोकने की कोशिश की, जो टर्की की वैश्विक महत्वाकांक्षाओं के लिए झटका है।
टर्की की रणनीति और भारत का जवाब
टर्की की रणनीति साफ है—वो पाकिस्तान के साथ गहरे सैन्य और कूटनीतिक रिश्तों के ज़रिए दक्षिण एशिया में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहता है। टर्की, पाकिस्तान को बायक्तर TB2, अकिंची ड्रोन्स और MILGEM-क्लास युद्धपोत जैसी उन्नत तकनीक दे रहा है। दोनों देश KAAN फाइटर जेट पर भी साथ काम कर रहे हैं। लेकिन इस रणनीति का उल्टा असर भी हो रहा है। पाकिस्तान में यिहा III ड्रोन्स के कई बार क्रैश होने की खबरें आईं, जिससे वहां के विश्लेषकों ने इसकी गुणवत्ता और ट्रेनिंग पर सवाल उठाए। सियालकोट में तो स्थानीय लोगों ने गलती से अपने ही ड्रोन को भारतीय समझकर तोड़ डाला, जिसका वीडियो वायरल हो गया।
भारत ने इस चुनौती का जवाब अपनी मज़बूत वायु रक्षा प्रणाली से दिया। अकाश मिसाइल सिस्टम और काउंटर-ड्रोन तकनीकों ने पाकिस्तान के 300-400 ड्रोन्स को नाकाम कर दिया। भारत अब ड्रोन मलबे की फोरेंसिक जांच कर रहा है, ताकि टर्की और चीन की तकनीक को और बेहतर समझ सके। साथ ही, भारत अपनी स्वदेशी ड्रोन और AI-आधारित युद्ध तकनीकों पर ज़ोर दे रहा है, ताकि भविष्य में ऐसी चुनौतियों से निपटा जा सके।
आगे की राह
टर्की की ड्रोन डिप्लोमेसी ने भारत-पाकिस्तान तनाव को नया आयाम दिया है। एक तरफ, ये भारत के लिए सैन्य और कूटनीतिक चुनौती है, तो दूसरी तरफ, इसने भारत में राष्ट्रवादी भावनाओं को और भड़काया है। “बॉयकॉट टर्की” आंदोलन सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि एक भावनात्मक प्रतिक्रिया भी है, जो भारत की एकता और आत्मनिर्भरता की मांग को दर्शाता है।
भारत के सामने अब सवाल ये है कि वो टर्की के साथ रिश्तों को कैसे संभाले। क्या भारत टर्की के साथ पूरी तरह कूटनीतिक संबंध तोड़ देगा, या फिर आर्थिक और व्यापारिक दबाव बनाकर उसे सबक सिखाएगा? दूसरी तरफ, टर्की को भी सोचना होगा कि क्या पाकिस्तान का साथ देकर वो भारत जैसे बड़े बाज़ार और वैश्विक शक्ति को खोना चाहता है।
फिलहाल, भारत की जनता और सरकार दोनों एकजुट हैं। टर्की के ड्रोन्स भले ही आसमान में उड़ें, लेकिन भारत की ज़मीन पर उसका जवाब तैयार है—चाहे वो सैन्य ताकत हो, कूटनीतिक चाल हो, या फिर “बॉयकॉट टर्की” का जन-आंदोलन।
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